शुक्र प्रदोष व्रत : महत्व, पूजा विधि और लाभ

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प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। जब यह तिथि शुक्रवार को पड़ती है तो इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा पाने के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।

शुक्र प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व

इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है और दांपत्य संबंधों में मधुरता बनी रहती है। विशेष रूप से अविवाहित कन्याओं के लिए यह व्रत उत्तम फलदायी माना गया है। इस व्रत से अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।

पूजा विधि

    प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या शिवलिंग के समक्ष दीपक जलाएँ। गंध, अक्षत, पुष्प, बेलपत्र और धतूरा चढ़ाएँ। "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जप करें। संध्या काल में प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें और शिव-पार्वती की आरती करें।
शुक्र प्रदोष व्रत से मिलने वाले लाभ
  • दांपत्य जीवन में मधुरता आती है। अविवाहितों को उत्तम जीवनसाथी मिलता है। आर्थिक और भौतिक सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। परिवार में शांति और सौहार्द का वातावरण बना रहता है।

आगामी प्रदोष व्रत की तिथियाँ
  • 19 सितंबर 2025, शुक्रवार शुक्र प्रदोष व्रत
  • 04 अक्टूबर 2025, शनिवार शनि प्रदोष व्रत
  • 18 अक्टूबर 2025, शनिवार शनि प्रदोष व्रत
  • 03 नवंबर 2025, सोमवार सोम प्रदोष व्रत
  • 17 नवंबर 2025, सोमवार सोम प्रदोष व्रत
  • 02 दिसंबर 2025, मंगलावर भौम प्रदोष व्रत
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