रोहिणी व्रत जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ पालन किया जाता है। इस व्रत का पालन रोहिणी नक्षत्र के दिन किया जाता है, जो हर 27 दिनों में एक बार आता है।
रोहिणी व्रत का पालन करने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और आत्मा की शुद्धि होती है। यह व्रत परिवार में सुख और समृद्धि लाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका पालन करने से परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ और खुशहाल रहते हैं। जैन धर्म के अनुयायी इस व्रत को अपने धार्मिक कर्तव्यों के रूप में मानते हैं और इसे अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ पालन करते हैं।
रोहिणी व्रत की विधि
स्नान और शुद्धिकरण: व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
पूजा की तैयारी:भगवान वासुपूज्य की मूर्ति या चित्र के सामने पूजा की थाली सजाएं जिसमें धूप, दीप, चंदन, पुष्प और नैवेद्य (भोग) रखें।
व्रत का संकल्प: भगवान वासुपूज्य का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
पूजा और आरती:भगवान की पूजा और आरती करें। भगवान वासुपूज्य के मंत्रों का जाप करें और उनसे परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की प्रार्थना करें।
व्रत का पालन:पूरे दिन व्रत रखें। व्रत के दौरान केवल फलाहार या जल का सेवन किया जा सकता है, परंतु कुछ लोग निर्जल व्रत भी रखते हैं।
धार्मिक ग्रंथों का पाठ: दिनभर धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें और भगवान वासुपूज्य की लीलाओं का स्मरण करें।
रोहिणी व्रत की कथा
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। वह भगवान वासुपूज्य का परम भक्त था। एक दिन उसने रोहिणी व्रत का पालन करने का निश्चय किया। व्रत के प्रभाव से उसकी सभी समस्याएं दूर हो गईं और वह धन-धान्य से संपन्न हो गया। इस प्रकार, रोहिणी व्रत के पालन से उसकी सभी कष्टों का निवारण हुआ और उसे सुख-समृद्धि प्राप्त हुई।
रोहिणी व्रत, जो भगवान वासुपूज्य की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है
रोहिणी व्रत का पालन करने से आध्यात्मिक उन्नति, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत का पालन श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से भगवान वासुपूज्य की कृपा मिलती है और सभी कष्टों का निवारण होता है।