मेरु त्रयोदशी 2025 : तिथि, पूजा विधि और महत्व
मेरु त्रयोदशी हिंदू पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि को मनाया जाने वाला एक पवित्र पर्व है। इसे मेरु पर्वत और भगवान विष्णु से जोड़कर देखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन मेरु पर्वत के प्रतीक स्वरूप पूजा करने और व्रत रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन में स्थिरता और समृद्धि आती है।
मेरु त्रयोदशी का महत्व
- मेरु पर्वत को ब्रह्मांड की धुरी और दिव्य शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
- इस दिन व्रत रखने से धन, आयु और परिवार में स्थिरता प्राप्त होती है।
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
- पितृ दोष और ग्रह दोष शांति के लिए भी यह व्रत शुभ माना गया है।
मेरु त्रयोदशी पूजा विधि
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर या मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा/चित्र स्थापित करें।
- मेरु पर्वत के प्रतीक स्वरूप (अखण्ड दीपक, शंख या धातु का स्तंभ) की पूजा करें।
- तुलसी पत्र, पीली वस्तुएं, पुष्प और धूप-दीप अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम, विष्णु मंत्र और लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें।
- दिनभर व्रत रखें और शाम को दान-पुण्य करें।
मेरु त्रयोदशी की कथा
पुराणों में उल्लेख है कि मेरु पर्वत देवताओं और असुरों के समुद्र मंथन का आधार बना था। इस पर्वत की तरह स्थिरता, शक्ति और दिव्यता प्राप्त करने हेतु यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है।
मेरु त्रयोदशी व्रत जीवन में स्थिरता, समृद्धि और दिव्य शक्ति प्राप्त करने का उत्तम अवसर है। श्रद्धा और नियमपूर्वक पूजा करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन के संकट दूर होते हैं।
आगामी मेरु त्रयोदशी की तिथियाँ
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