कन्या पूजन विधि | महत्व, सामग्री और संपूर्ण प्रक्रिया

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नवरात्रि के अंतिम दिनों (अष्टमी और नवमी) पर कन्या पूजन का विशेष महत्व है। माँ दुर्गा की 9 शक्तियों का पूजन करने के बाद छोटी बालिकाओं को देवी स्वरूप मानकर उनका आदर-सत्कार किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार 2 से 10 वर्ष की कन्याएँ माँ दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक मानी जाती हैं। इनके साथ एक बालक (लंगूरिया/भैरव रूप) को भी पूजन में सम्मिलित किया जाता है। कन्या पूजन से माँ दुर्गा प्रसन्न होकर साधक को सुख-समृद्धि, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं।

कन्या पूजन की आवश्यक सामग्री

  1. स्वच्छ आसन
  2. अक्षत (चावल)
  3. रोली, सिंदूर
  4. फूल एवं माला
  5. कुमकुम व चंदन
  6. दीपक व धूप
  7. पूड़ी, हलवा, चना (भोग)
  8. चुनरी
  9. दक्षिणा
  10. फल व मिठाई

कन्या पूजन की विधि

1. स्थान की तैयारी
  • घर के पवित्र स्थान या मंदिर में स्वच्छ आसन बिछाएँ।
  • देवी मां की प्रतिमा/चित्र के सामने दीपक और धूप जलाएँ।
2. कन्याओं का स्वागत
  • 2 से 10 वर्ष की आयु की कन्याओं (संख्या 9 या 11) को आमंत्रित करें।
  • उनके पैरों को धोकर आसन पर बैठाएँ।
3. पूजन प्रक्रिया
  • सबसे पहले उनके चरणों को पवित्र जल से धोकर “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:” मंत्र का स्मरण करें।
  • माथे पर रोली और अक्षत से तिलक लगाएँ।
  • फूल और चुनरी अर्पित करें।
  • धूप-दीप से आरती करें।
4. भोग लगाना
  • प्रसाद स्वरूप पूड़ी, काला चना और सूजी/आटे का हलवा परोसा जाता है।
  • यह भोग माँ अन्नपूर्णा का प्रतीक माना जाता है।
5. दक्षिणा और विदाई
  • भोजन कराने के बाद कन्याओं को उपहार, दक्षिणा और चुनरी देकर सम्मानपूर्वक विदा करें।
  • साथ में एक लंगूरिया (छोटे बालक) को भी भोजन कराना शुभ माना जाता है।

कन्या पूजन के लाभ

  • माँ दुर्गा की कृपा बनी रहती है।
  • घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है।
  • नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
  • जीवन में सफलता और उन्नति प्राप्त होती है।
यह विधि नवरात्रि अष्टमी या नवमी को प्रचलित रूप से की जाती है।

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