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प्रकृति

कमलाकांत प्रभु कमलनयन स्वामी

sawariya_krishna
कमलाकांत प्रभु कमलनयन स्वामी, घट घट वासी अंतर्यामी । नारायण दीनदयाल, जय जगदीश हरे । निज भक्तन के प्रतिपाल, जय जगदीश हरे ॥ जय जय राम राजा राम, जय जय राम राजा राम प्रभु अनुसरण जेहि जन कीना । नाथ परमपद तिन कर दीना ॥ भक्ति भाव की ऐसी धारा । जो डूबे सो उतरे पारा ॥ कलियुग केवल नाम अधारा । हरी सुमिरन हरी कीर्तन सारा ॥ नारायण दीनदयाल, जय जगदीश हरे। वितरसि दिक्षुरनि दिक्पति कमनीयं दशमुख मौली बलिम रमनीयं ॥ केशव धृत राम शरीर जय जगदीश हरे । हरी हरते जन की पीड़ जय जगदीश हरे ॥ जय जय नारायण नारायण नारायण हरी हरी नारायण नारायण नारायण नारायण दीनदयाल, जय जगदीश हरे । निज भक्तन के प्रतिपाल, जय जगदीश हरे॥ शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं । विश्वाधारं गगनसदृश्यम मेघवरणं शुभांगम ॥ लक्ष्मीकांतं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगमयं । वंदे विष्णु भवभय हरं सर्व लोकेक नाथं ॥ कमलाकांत प्रभु कमलनयन स्वामी, घट घट वासी अंतर्यामी । नारायण दीनदयाल, जय जगदीश हरे । निज भक्तन के प्रतिपाल, जय जगदीश हरे ॥
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