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अक्षय नवमी

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अक्षय नवमी का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है और यह विशेष रूप से उत्तर भारत में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। अक्षय नवमी का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि इसे शुभ और अक्षय फल प्रदान करने वाला माना जाता है।

अक्षय नवमी का महत्व

अक्षय नवमी को धरती पर सतयुग का आरंभ हुआ माना जाता है। इस दिन को इसलिए पवित्र माना गया है कि जो भी पुण्य कर्म इस दिन किए जाते हैं, वे अनंत और अक्षय फल प्रदान करते हैं। मान्यता है कि इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-शांति प्राप्त होती है। आंवला को भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है।

अक्षय नवमी की पूजा विधि

स्नान और संकल्प:
अक्षय नवमी के दिन प्रातःकाल स्नान करके व्रत और पूजा का संकल्प लें।
आंवले के वृक्ष की पूजा:
इस दिन विशेष रूप से आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। आंवले के वृक्ष के पास दीपक जलाएं, फूल, अक्षत (चावल), जल, और मिठाई अर्पित करें। वृक्ष के चारों ओर धागा बांधते हुए परिक्रमा करें।
भोजन और भोग:
इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने और प्रसाद बांटने का भी विशेष महत्व है।
दान-पुण्य:
अक्षय नवमी के दिन गौदान, अन्नदान, और वस्त्रदान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

अक्षय नवमी का धार्मिक महत्व

अक्षय नवमी के दिन व्रत और पूजा करने से जीवन में अक्षय (न समाप्त होने वाला) फल प्राप्त होता है। इस दिन किए गए दान और पुण्यकर्म अक्षय रहते हैं और आने वाले जन्मों में भी इसका प्रभाव बना रहता है। यह पर्व हमें प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का संदेश देता है और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देता है।

अक्षय नवमी का संदेश

अक्षय नवमी हमें यह सिखाती है कि हमारे द्वारा किए गए अच्छे कर्म हमेशा हमारे साथ रहते हैं। यह दिन प्रकृति की महिमा का आदर करने और हमारे जीवन में हरियाली और स्वास्थ्य का प्रतीक है।
आगामी अक्षय नवमी की तिथियाँ
  • 31 अक्टूबर 2025, शुक्रवार
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