शैलपुत्री देवी
शैलपुत्री देवी का नाम संस्कृत के "शैल" (पर्वत) और "पुत्री" (पुत्री/बेटी) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है "पर्वत की पुत्री"। शैलपुत्री देवी हिंदू धर्म की देवी दुर्गा के नौ रूपों में से पहला रूप हैं, जिन्हें विशेष रूप से नवरात्रि के पहले दिन पूजा जाता है।
शैलपुत्री को हिमालय की बेटी और भगवान शिव की पत्नी पार्वती का अवतार माना जाता है। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल है, और वे वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं। उनकी पूजा से भक्तों को मानसिक शांति और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
शैलपुत्री देवी का महत्व
प्रथम स्वरूप: शैलपुत्री देवी नवरात्रि के दौरान दुर्गा माता के नौ रूपों में से प्रथम स्वरूप हैं। नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा की जाती है, जो भक्तों के जीवन में सकारात्मकता और शांति लाती है।
शक्ति का प्रतीक: वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी पार्वती का अवतार हैं। शैलपुत्री देवी को सृष्टि की शक्ति और सभी जीवों की माता के रूप में पूजा जाता है।
सादगी और साहस: देवी शैलपुत्री सादगी, पवित्रता, और साहस का प्रतीक मानी जाती हैं। उनकी पूजा से भक्तों में धैर्य, शांति और साहस की वृद्धि होती है।
मूलाधार चक्र: देवी शैलपुत्री का संबंध मूलाधार चक्र से है, जो जीवन की ऊर्जा और आधार शक्ति का प्रतीक है। इस चक्र की आराधना से जीवन में स्थिरता और संतुलन आता है।
शैलपुत्री देवी की पूजा विधि
स्वच्छता: सबसे पहले, स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को पवित्र करें।
कलश स्थापना: कलश में जल भरकर उसमें आम के पत्ते और नारियल रखकर कलश स्थापना करें। इसे माँ दुर्गा के प्रतीक के रूप में पूजा स्थल पर रखें।
मंत्र जप: देवी शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें, जैसे "ॐ शैलपुत्र्यै नमः"। मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
पुष्प और धूप: देवी को लाल रंग के पुष्प अर्पित करें और धूप-दीप जलाएं।
प्रसाद:देवी को गाय का घी और गुड़ का नैवेद्य (प्रसाद) अर्पित करें।
आरती:अंत में, देवी की आरती करें और सभी परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर माँ का गुणगान करें।
प्रणाम: पूजा समाप्त करने के बाद देवी को प्रणाम करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।
शैलपुत्री देवी की आराधना से जीवन में शांति, समृद्धि, और शक्ति प्राप्त होती है। उनके आशीर्वाद से सभी प्रकार के दुखों और कष्टों का निवारण होता है।