त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।
गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।
यह श्लोक भगवान गोविन्द (श्री कृष्ण) को समर्पित एक विनम्रता और भक्ति का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि जो भी वस्तु (धन, संपत्ति, या कोई भी चीज) हमारे पास है, वह वास्तव में आपकी ही है और हम उसे आपको ही समर्पित कर रहे हैं। भगवान से विनती की जाती है कि वे कृपया इसे स्वीकार करें और प्रसन्न हों।
श्लोक का अर्थ:
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।
हे गोविन्द, यह वस्तु आपकी ही है, और इसे मैं आपको ही समर्पित करता हूँ।
गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर।।
कृपया इसे सम्मुख होकर स्वीकार करें और मुझ पर प्रसन्न हों, हे परमेश्वर।
यह श्लोक व्यक्ति की भक्ति, समर्पण और विनम्रता को प्रकट करता है, और यह समझाता है कि सब कुछ भगवान का ही है, और जो कुछ भी हम उनके चरणों में अर्पित करते हैं, वह वास्तव में उनका ही है।
भोग लगाने का मंत्र एक संस्कृत मंत्र है जिसका उपयोग भगवान को भोग लगाने के समय किया जाता है यह मंत्र भगवान को समर्पण का प्रतीक है। यह एक ऐसा तरीका है जिससे हम अपने आराध्य देव को अपनी श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करते हैं। भोग लगाने के मंत्र का उच्चारण करते समय, हमारा मन पूरी तरह से भगवान में केंद्रित होना चाहिए। हमें यह विश्वास होना चाहिए कि भगवान हमारे द्वारा अर्पित भोग को स्वीकार करेंगे और हम पर प्रसन्न होकर हमें आशीर्वाद देंगे।