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कालाष्टमी : तिथि, व्रत विधि, महत्व और कथा

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हिंदू धर्म में कालाष्टमी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान भैरव को समर्पित होता है और हर मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। विशेष रूप से मार्गशीर्ष मास की कालाष्टमी को भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने और भगवान भैरव की पूजा करने से भय दूर होता है, जीवन में शांति आती है और साधक को दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है।

कालाष्टमी व्रत का महत्व

  • भगवान भैरव की पूजा से भय, शत्रु और बाधाएँ दूर होती हैं।
  • जीवन में साहस, शक्ति और आत्मबल की वृद्धि होती है।
  • पापों का नाश होता है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • तंत्र-साधना और सिद्धि के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • साधक को आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कालाष्टमी व्रत विधि

  • प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • भगवान भैरव की प्रतिमा अथवा चित्र की स्थापना करें।
  • धूप, दीप, पुष्प, नारियल, तेल का दीपक और मदिरा आदि भैरव जी को अर्पित करें।
  • भैरव चालीसा, भैरवाष्टक और "ॐ काल भैरवाय नमः" मंत्र का जाप करें।
  • रात्रि में जागरण कर भजन-कीर्तन करें।
  • अगले दिन पारण कर ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन कराएँ।

कालाष्टमी व्रत कथा

पुराणों के अनुसार, भगवान शिव के क्रोध से भगवान भैरव का जन्म हुआ था। उन्होंने ब्रह्माजी के अहंकार को दूर किया और देवताओं की रक्षा की। भगवान भैरव को समय और काल का स्वामी माना जाता है। मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन व्रत और पूजा करने से सभी दुख दूर होते हैं और व्यक्ति निर्भय होकर जीवन जीता है। कालाष्टमी व्रत का पालन करने से व्यक्ति को जीवन में भय से मुक्ति, पापों का नाश और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। जो श्रद्धा और भक्ति से भगवान भैरव की उपासना करता है, वह सदैव उनकी कृपा का पात्र बनता है।
आगामी कालाष्टमी की तिथियाँ
  • 12 नवंबर 2025, बुधवार कालाष्टमी
  • 11 दिसंबर 2025, गुरुवर कालाष्टमी
  • 10 जनवरी 2026, शनिवार कालाष्टमी
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