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वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी : व्रत कथा, पूजा विधि और महत्व

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हिंदू धर्म में हर महीने आने वाली संकष्टी चतुर्थी भगवान श्री गणेश को समर्पित होती है। जब यह चतुर्थी मंगलवार के दिन पड़ती है, तो इसे अंगारकी संकष्टी कहा जाता है, जबकि हर संकष्टी को एक विशेष नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाई जा रही है, जो गणेश जी के वक्रतुंड स्वरूप को समर्पित है।

पूजा विधि

  1. प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें।
  2. “ॐ वक्रतुंडाय नमः” का 108 बार जप करें।
  3. लाल फूल, दूर्वा, मोदक और फल अर्पित करें।
  4. दिनभर उपवास रखें और चंद्रोदय के बाद गणेश जी का दर्शन कर व्रत खोलें।

व्रत कथा

एक बार भगवान शिव और पार्वती माता कैलाश पर्वत पर विश्राम कर रहे थे। उसी समय पार्वती जी ने गणेश जी से कहा कि वे द्वार की रक्षा करें और किसी को भी भीतर न आने दें। तभी भगवान शिव आए और प्रवेश करना चाहा। गणेश जी ने माता के आदेशानुसार उन्हें रोक दिया। इससे क्रोधित होकर शिव ने गणेश जी का सिर काट दिया। बाद में माता पार्वती के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने हाथी का सिर लाकर गणेश जी को पुनर्जीवित किया। उस दिन चतुर्थी तिथि थी, और तब से यह व्रत संकष्टी चतुर्थी के रूप में प्रसिद्ध हुआ। गणेश जी के वक्रतुंड स्वरूप को विघ्नहर्ता माना जाता है, जो हर बाधा को दूर करते हैं।

व्रत का महत्व

  • यह व्रत जीवन से सभी प्रकार के संकटों को दूर करता है।
  • गणेश जी की कृपा से कार्य सिद्ध होते हैं और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  • व्रत करने वाले व्यक्ति को बुद्धि, विवेक और सफलता प्राप्त होती है।

वक्रतुंड गणेश मंत्र

“ॐ वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”

इस मंत्र का जप करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं और मन को शांति प्राप्त होती है।

निष्कर्ष

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश के उन भक्तों के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है जो अपने जीवन से विघ्नों को दूर करना चाहते हैं। इस दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत करने से गणेश जी की असीम कृपा प्राप्त होती है।
आगामी संकष्टी की तिथियाँ
  • 10 अक्टूबर 2025, शुक्रवार वक्रतुंड संकष्टी
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