हिंदू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को श्रावण पूर्णिमा व्रत किया जाता है। यह दिन विशेष रूप से रक्षाबंधन पर्व के लिए प्रसिद्ध है।
इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और उनके दीर्घायु की कामना करती हैं। साथ ही, भगवान शिव, भगवान विष्णु और चंद्रमा की पूजा का भी विधान है।
श्रावण पूर्णिमा का महत्व
- इस दिन रक्षाबंधन का पर्व पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
- श्रावण पूर्णिमा पर उपाकर्म और वेदों का अध्ययन आरंभ करने की परंपरा है।
- भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
- इस दिन चंद्र दर्शन करना शुभ और कल्याणकारी माना गया है।
श्रावण पूर्णिमा पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान शिव और विष्णु की पूजा करें।
- चंद्रमा को अर्घ्य दें और चावल, दूध व सफेद वस्त्र अर्पित करें।
- भाई-बहन एक-दूसरे को रक्षा सूत्र (राखी) बांधें।
- संध्या समय दीपदान और भजन-कीर्तन करें।
श्रावण पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक मान्यता है कि इंद्राणी ने अपने पति इंद्रदेव की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधा था। तभी से रक्षाबंधन पर्व की परंपरा शुरू हुई।
इसके अतिरिक्त, ऋषि-मुनि इस दिन उपाकर्म कर नए सिरे से वेदों का अध्ययन आरंभ करते थे।
श्रावण पूर्णिमा व्रत से लाभ
- भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम और सुरक्षा की भावना प्रबल होती है।
- भगवान शिव, विष्णु और चंद्रमा की पूजा से स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है।
- इस दिन किए गए दान-पुण्य से पापों का क्षय होता है।
- जीवन में सुख-शांति और पारिवारिक एकता बनी रहती है।
विशेष पूजा और दान
- पूजा का समय: प्रातःकाल स्नान के बाद राखी बांधना और संध्या समय चंद्रमा को अर्घ्य देना श्रेष्ठ माना गया है।
- आवश्यक सामग्री: राखी, दीपक, दूध, चावल, फल, मिठाई और पुष्प।
- दान का महत्व: इस दिन अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करने से पुण्य प्राप्त होता है।
महत्व: श्रावण पूर्णिमा व्रत और रक्षाबंधन पर्व करने से भाई-बहन के रिश्ते में मजबूती आती है, परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और भगवान शिव-विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।