शाकंभरी पूर्णिमा व्रत : पूजा विधि, महत्व और शुभ फल
शाकंभरी पूर्णिमा हिन्दू पंचांग की महत्वपूर्ण पूर्णिमाओं में से एक है। यह व्रत शाकंभरी माता की पूजा के लिए विशेष रूप से रखा जाता है। आमतौर पर यह पौष–माघ मास के बीच में पड़ती है और इसे धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ के लिए मनाया जाता है।
शाकंभरी पूर्णिमा का महत्व
शाकंभरी माता को हरीत, अन्न और प्रकृति की देवी माना जाता है। इस दिन उनकी पूजा करने से जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।
- धार्मिक महत्व: इस दिन व्रत और पूजा करने से पापों का निवारण होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- आध्यात्मिक महत्व: यह दिन आत्मिक शुद्धि, मानसिक स्थिरता और प्राकृतिक ऊर्जा से जुड़ने के लिए उत्तम है।
शाकंभरी पूर्णिमा व्रत की विधि
- स्नान और शुद्धि: व्रती को सुबह उठकर पवित्र जल से स्नान करना चाहिए।
- पूजा स्थल की तैयारी: घर में पूजा स्थल को स्वच्छ करें और दीपक, धूप, पुष्प और नैवेद्य लगाएँ।
- पूजा सामग्री:
- दीपक, धूप और पुष्प
- नारियल, फल और हलवा/मिठाई
- हल्दी, रोली और सुपारी
पूजा विधि:
- शाकंभरी माता की प्रतिमा या तस्वीर के सामने पूजा करें।
- मंत्रोच्चारण और भजन-कीर्तन के साथ ध्यान लगाएँ।
- पूरे दिन फलाहार या निर्जला व्रत रखा जा सकता है।
- दान और सेवा: इस दिन जरूरतमंदों को अन्न या भोजन का दान करना शुभ माना जाता है।
शाकंभरी पूर्णिमा व्रत के लाभ
- जीवन में स्वास्थ्य और समृद्धि आती है।
- मानसिक और शारीरिक शांति मिलती है।
- आध्यात्मिक बल और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
- प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण के प्रति श्रद्धा बढ़ती है।
शाकंभरी पूर्णिमा का व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह व्रत न केवल धार्मिक परंपरा का पालन है, बल्कि स्वास्थ्य और प्रकृति के प्रति जागरूकता का मार्ग भी प्रदान करता है।
- शुभ तिथि: शाकंभरी पूर्णिमा
- शुभ रंग: हरा और पीला
- उपाय: इस दिन दान, सेवा और शाकंभरी माता की पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।
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