पौष पूर्णिमा व्रत : पूजा विधि, महत्व और शुभ फल

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पौष पूर्णिमा हिन्दू पंचांग की प्रमुख पूर्णिमाओं में से एक है। यह व्रत पौष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसे धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक लाभ के लिए रखा जाता है। आमतौर पर यह दिसंबर–जनवरी महीने में पड़ती है।

पौष पूर्णिमा का महत्व

पौष पूर्णिमा को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  1. धार्मिक महत्व: इस दिन व्रत और पूजा करने से पितृदोष और अन्य दोषों का निवारण होता है।
  2. आध्यात्मिक महत्व: यह दिन आत्मिक शांति, मानसिक स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा के लिए उत्तम है।

पौष पूर्णिमा व्रत की विधि

  1. स्नान और शुद्धि: व्रती को सुबह उठकर पवित्र जल से स्नान करना चाहिए।
  2. पूजा स्थल की तैयारी: घर में पूजा स्थल को स्वच्छ करें और दीपक, धूप, पुष्प और नैवेद्य लगाएँ।
  3. पूजा सामग्री:
    1. दीपक, धूप और पुष्प
    2. नारियल, फल और मिठाई
    3. हल्दी, रोली और सुपारी

पूजा विधि:

  1. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
  2. मंत्रोच्चारण और भजन-कीर्तन के साथ ध्यान लगाएँ।
  3. पूरे दिन फलाहार या निर्जला व्रत रखा जा सकता है।
  4. दान और सेवा: जरूरतमंदों को दान देना और किसी धार्मिक स्थल पर सेवा करना अत्यंत लाभकारी होता है।

पौष पूर्णिमा व्रत के लाभ

  • जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  • पितृदोष और अन्य दोषों का निवारण होता है।
  • मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  • आध्यात्मिक बल और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
पौष पूर्णिमा का व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह व्रत न केवल धार्मिक परंपरा का पालन है, बल्कि आत्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रदान करता है।
  • शुभ तिथि: पौष मास की पूर्णिमा
  • शुभ रंग: सफेद और पीला
  • उपाय: इस दिन दान, सेवा और माता लक्ष्मी की पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।

आगामी पौष पूर्णिमा की तिथियाँ
  • 03 जनवरी 2026, शनिवार
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