कार्तिक पूर्णिमा व्रत - पूजा विधि, महत्व और शुभ फल
कार्तिक पूर्णिमा हिन्दू पंचांग की महत्वपूर्ण पूर्णिमाओं में से एक है। यह व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसे खासतौर पर धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व के लिए रखा जाता है। आमतौर पर यह अक्टूबर–नवंबर महीने में पड़ती है।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व है।
- धार्मिक महत्व: इस दिन दान-पुण्य करने, गंगा स्नान करने और व्रत रखने से पाप नष्ट होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
- आध्यात्मिक महत्व: यह दिन आत्मिक शुद्धि और मानसिक शांति के लिए उत्तम माना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत की विधि
- स्नान और शुद्धि: व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह उठकर पवित्र जल से स्नान करना चाहिए। गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
- पूजा की तैयारी: घर में पूजा स्थल को साफ करें और दीपक, धूप, फूल, फल और नैवेद्य लगाएँ।
- पूजा सामग्री:
- दीपक, धूप, पुष्प और फल
- नारियल, मिठाई और दही
- हल्दी, रोली और सुपारी
पूजा विधि:
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
- मंत्रोच्चारण और भजन-कीर्तन के साथ ध्यान लगाएँ।
- पूरे दिन फलाहार या निर्जला व्रत रखा जा सकता है।
- दान और सेवा: जरूरतमंदों को दान देना और किसी धार्मिक स्थल पर सेवा करना शुभ माना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत के लाभ
- जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
- पितृदोष और अन्य दोषों का निवारण होता है।
- मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- आध्यात्मिक बल और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
कार्तिक पूर्णिमा का व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह व्रत न केवल धार्मिक परंपरा का पालन है, बल्कि आत्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रदान करता है।
- शुभ तिथि: कार्तिक मास की पूर्णिमा
- शुभ रंग: पीला और सफेद
- उपाय: इस दिन दान, सेवा और माता लक्ष्मी की पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।
आगामी कार्तिक पूर्णिमा की तिथियाँ
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05 नवंबर 2025, बुधवार
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05 नवंबर 2025, बुधवार कार्तिक पूर्णिमा व्रत
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