रवि प्रदोष व्रत : महत्व, पूजा विधि और लाभ
हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के प्रमुख व्रतों में से एक है। यह व्रत प्रत्येक चंद्र पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। जब यह व्रत रविवार को पड़ता है, तब इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है।
रवि प्रदोष व्रत का महत्व
- रवि प्रदोष व्रत से दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
- यह व्रत पितृ दोष निवारण और कर्म दोष शांति के लिए विशेष प्रभावी माना जाता है।
- भगवान शिव की कृपा से भक्त को स्वास्थ्य लाभ और परिवार में सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
- इस व्रत से सूर्य दोष भी दूर होते हैं और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- सूर्य देव को जल अर्पित करें और आदित्य मंत्र का जाप करें।
- प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद) भगवान शिव का गंगाजल, दूध, दही, शहद, बेलपत्र, धतूरा और फल-फूल से अभिषेक करें।
- धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित कर शिव परिवार की पूजा करें।
- शिव चालीसा या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
- कथा श्रवण के बाद व्रत का समापन करें।
व्रत के नियम
- पूरे दिन व्रतधारी फलाहार या निर्जला व्रत रख सकता है।
- झूठ, क्रोध और अपवित्रता से बचना चाहिए।
- शाम को शिवालय जाकर आरती अवश्य करें।
रवि प्रदोष व्रत के लाभ
- आयु वृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य
- पितृ दोष और सूर्य दोष निवारण
- कर्म शुद्धि और मानसिक शांति
- परिवार में सुख-समृद्धि और संतान सुख
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