हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान और भगवान विष्णु-शिव की पूजा का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस दिन किया गया व्रत और पुण्यकर्म अक्षय फल प्रदान करता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व
- इस दिन गंगा स्नान एवं दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
- भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने से विशेष लाभ होता है।
- धार्मिक स्नान और दान-पुण्य से पापों का नाश होता है।
- यह दिन स्वास्थ्य, समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति के लिए शुभ माना गया है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा पूजा विधि
- प्रातःकाल पवित्र नदी या गंगा में स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान विष्णु और भगवान शिव की प्रतिमा/लिंग की पूजा करें।
- धूप, दीप, पुष्प, बेलपत्र, फल और मिष्ठान्न अर्पित करें।
- सत्यनारायण भगवान की कथा या शिवपुराण का श्रवण करें।
- संध्या समय दीपदान और भजन-कीर्तन करें।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान और दान करने से सभी पापों का नाश होता है और अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
कहा जाता है कि इस दिन किए गए व्रत एवं पूजा से भगवान विष्णु और शिव प्रसन्न होकर भक्तों को सुख-समृद्धि और मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत से लाभ
- सभी प्रकार के पापों का क्षय होता है।
- आयु, आरोग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
- भगवान विष्णु और शिव का आशीर्वाद मिलता है।
विशेष पूजा और दान
- पूजा का समय: प्रातःकाल गंगा स्नान एवं संध्या काल में दीपदान करना सबसे शुभ है।
- आवश्यक सामग्री: गंगाजल, कलश, पुष्प, बेलपत्र, धूप-दीप, पंचामृत, फल और मिष्ठान्न।
- दान का महत्व: अन्न, वस्त्र, तिल और जल का दान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
महत्व: ज्येष्ठ पूर्णिमा को गंगा स्नान, दान और भगवान विष्णु-शिव की पूजा करने से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं, परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।