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प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्र विनायकम् मंत्र: आयुष्य और सिद्धि प्रदान करने वाला श्लोक

icchapurti-mantra
हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता कहा गया है। हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी की आराधना से की जाती है। ऐसा ही एक पवित्र श्लोक है —

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्र विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यायुष्कामार्थसिद्धये ॥

मंत्र का अर्थ

  • प्रणम्य शिरसा: सिर झुकाकर नमस्कार करते हुए
  • देवं: देवता (भगवान गणेश)
  • गौरीपुत्र: माता पार्वती के पुत्र
  • विनायकम्: विघ्नहर्ता भगवान गणेश
  • भक्तावासं: जो भक्तों के हृदय में निवास करते हैं
  • स्मरेत् नित्य: जो प्रतिदिन स्मरण करें
  • आयुष्काम: दीर्घायु की कामना के लिए
  • अर्थसिद्धये: मनोवांछित फल और सिद्धि की प्राप्ति हेतु

मंत्र का महत्व

यह श्लोक उन भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी है जो दीर्घायु, स्वास्थ्य और जीवन में सफलता की कामना करते हैं। इसे प्रतिदिन स्मरण करने से बुद्धि, बल, और आयु की वृद्धि होती है।

जप विधि

  1. प्रातःकाल स्नान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक और धूप जलाएं।
  3. इस श्लोक का 11 या 21 बार उच्चारण करें।
  4. सच्चे मन से आशीर्वाद की प्रार्थना करें।

लाभ

  • दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति।
  • जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति।
  • मनोवांछित सिद्धि और सफलता का आशीर्वाद।
  • मन की शांति और सकारात्मकता में वृद्धि।
‘प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्र विनायकम्’ मंत्र का नियमित जप करने से जीवन में हर क्षेत्र में संतुलन, सफलता और सुख की प्राप्ति होती है।

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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