In Hinduism, Lord Ganesha is considered the first deity to be worshipped and the remover of obstacles. Every auspicious task begins with the worship of Lord Ganesha. One such sacred verse is:
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्र विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यायुष्कामार्थसिद्धये ॥
Pranamya Shirsa Devan Gauriputra Vinayakam|
Bhakta-vasam smrennitya-yushka-martha-siddhaye ॥
मंत्र का अर्थ
- प्रणम्य शिरसा: सिर झुकाकर नमस्कार करते हुए
- देवं: देवता (भगवान गणेश)
- गौरीपुत्र: माता पार्वती के पुत्र
- विनायकम्: विघ्नहर्ता भगवान गणेश
- भक्तावासं: जो भक्तों के हृदय में निवास करते हैं
- स्मरेत् नित्य: जो प्रतिदिन स्मरण करें
- आयुष्काम: दीर्घायु की कामना के लिए
- अर्थसिद्धये: मनोवांछित फल और सिद्धि की प्राप्ति हेतु
मंत्र का महत्व
यह श्लोक उन भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी है जो दीर्घायु, स्वास्थ्य और जीवन में सफलता की कामना करते हैं। इसे प्रतिदिन स्मरण करने से बुद्धि, बल, और आयु की वृद्धि होती है।जप विधि
- प्रातःकाल स्नान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक और धूप जलाएं।
- इस श्लोक का 11 या 21 बार उच्चारण करें।
- सच्चे मन से आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
लाभ
- दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति।
- जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति।
- मनोवांछित सिद्धि और सफलता का आशीर्वाद।
- मन की शांति और सकारात्मकता में वृद्धि।