मैसूर दशहरा : इतिहास, तिथि, महत्व और भव्य जुलूस
मैसूर दशहरा, जिसे नाडा हब्बा (राज्य पर्व) भी कहा जाता है, कर्नाटक का सबसे प्रसिद्ध और भव्य त्योहार है। यह पर्व शक्ति की देवी चामुंडेश्वरी की विजय का प्रतीक है और अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मनाया जाता है। इस दौरान मैसूर का अम्बा विलास पैलेस (मैसूर पैलेस) जगमग रोशनी से सजाया जाता है और पूरा शहर उत्सवमय हो उठता है।
मैसूर दशहरा का इतिहास
इसका आरंभ विजयनगर साम्राज्य (15वीं शताब्दी) में हुआ। बाद में वाडियार राजवंश ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। मान्यता है कि देवी चामुंडेश्वरी ने महिषासुर राक्षस का वध कर धर्म की स्थापना की। इसी विजय के उपलक्ष्य में हर साल यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
प्रमुख आकर्षण
- मैसूर पैलेस की रोशनी – दशहरे के दौरान पैलेस में लगभग 1 लाख से अधिक बल्ब जलाए जाते हैं।
- जम्बू सावरी (हाथी जुलूस) – विजयादशमी के दिन देवी चामुंडेश्वरी की स्वर्ण पालकी को सजे-धजे हाथी पर विराजमान कर जुलूस निकाला जाता है।
- राजसी परेड – घोड़े, ऊंट, बैंड, नृत्य दल और झांकियां इस जुलूस को और भव्य बनाती हैं।
- युवा दशहरा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम – संगीत, नृत्य, लोककला और खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन।
- यात्री आकर्षण – इस समय लाखों देशी-विदेशी पर्यटक मैसूर पहुँचते हैं।
धार्मिक महत्व
- देवी चामुंडेश्वरी शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक मानी जाती हैं।
- दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है।
- यह पर्व सामाजिक एकता, सांस्कृतिक समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक है।
2025 मैसूर दशहरा की तिथियाँ
- आरंभ: 2 अक्टूबर 2025 (घटस्थापना)
- समापन: 12 अक्टूबर 2025 (विजयादशमी)
मैसूर दशहरा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर और विरासत का जीवंत उदाहरण है। इसकी भव्यता, परंपरा और आकर्षण इसे विश्व प्रसिद्ध बनाते हैं। यदि आप कभी कर्नाटक जाएं, तो इस अवसर पर मैसूर दशहरा का उत्सव अवश्य देखें।
आगामी मैसूर दशहरा की तिथियाँ
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