गुजराती नववर्ष क्या है?
गुजराती नववर्ष, जिसे ‘बेस्टु वरस’ (Bestu Varas) कहा जाता है, दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है। यह दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को पड़ता है। इस दिन से गुजराती पंचांग का नया वर्ष आरंभ होता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
गुजराती नववर्ष का संबंध भगवान विष्णु के वामन अवतार और राजा बलि की कथा से भी जुड़ा है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक में शासन करने का वरदान दिया और प्रतिपदा तिथि से एक नए आरंभ की परंपरा शुरू हुई।
गुजराती लोग इसे नए आरंभ और समृद्धि के प्रतीक के रूप में मनाते हैं। इस दिन पुराने विवाद समाप्त कर, परिवार और व्यापार में नए संबंधों की शुरुआत की जाती है।
व्यापारी वर्ग के लिए विशेष महत्व
गुजराती समाज में व्यापारी समुदाय इस दिन को बहुत शुभ मानता है। इस दिन वे अपने नए बही खाते (लाल किताब) की पूजा करते हैं, जिसे “चोपड़ा पूजन” कहा जाता है।
भविष्य में व्यापार में वृद्धि और लाभ के लिए लक्ष्मी गणेश की पूजा की जाती है।
घर-परिवार की परंपराएँ
- घरों की सजावट रंगोली और दीपों से की जाती है।
- सुबह-सुबह स्नान के बाद नए वस्त्र धारण किए जाते हैं।
- लोग अपने परिजनों और मित्रों से मिलने जाते हैं और “साल मुबारक” कहकर नववर्ष की शुभकामनाएँ देते हैं।
- मिठाई और विशेष व्यंजन जैसे घुघरा, लड्डू, फाफड़ा-जलेबी बनाकर बाँटे जाते हैं।
पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान के बाद लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है।
- धन की देवी लक्ष्मी से घर में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
- कुबेर पूजन और चोपड़ा पूजन करने का विशेष महत्व होता है।
गुजराती नववर्ष एक ऐसा पर्व है जो नव आरंभ, शुभकामना और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। यह न केवल भौतिक समृद्धि बल्कि आध्यात्मिक संतुलन और पारिवारिक एकता का भी संदेश देता है।
इस दिन को प्रेम, उत्साह और शुभ विचारों के साथ मनाना ही सच्ची परंपरा है।
शुभकामनाएँ
“साल मुबारक” — नए वर्ष में आपके जीवन में खुशियाँ और समृद्धि बनी रहे।