दक्षिण सरस्वती पूजा 2025 – महत्व, विधि और परंपरा
दक्षिण सरस्वती पूजा दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान है। यह पूजा मुख्यतः नवरात्रि के समय की जाती है और इसे "सरस्वती पूजई" या "विद्यारंभम" भी कहा जाता है।
मां सरस्वती को ज्ञान, विद्या, संगीत और कला की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। दक्षिण भारत में यह परंपरा विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक राज्यों में बहुत श्रद्धा और भक्ति से निभाई जाती है।
महत्व
- दक्षिण सरस्वती पूजा से शिक्षा और विद्या में प्रगति होती है।
- बच्चे इस दिन नई विद्या की शुरुआत करते हैं (विद्यारंभम संस्कार)।
- संगीत और कला के क्षेत्र में सफलता के लिए मां सरस्वती की विशेष कृपा मिलती है।
- घर में ज्ञान और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
विधि
- नवरात्रि के अंतिम तीन दिनों में मां सरस्वती की पूजा की जाती है।
- पुस्तकें, वाद्ययंत्र और अध्ययन सामग्री देवी के सामने रखकर पूजन करते हैं।
- अष्टमी और नवमी पर देवी की विशेष आराधना की जाती है।
- दशमी के दिन "विद्यारंभम" या "एझुथिनीरुथल" (लिखने की शुरुआत) का आयोजन होता है।
- छोटे बच्चे चावल की थाली या स्लेट पर गुरु के मार्गदर्शन से "ॐ" या अक्षर लिखना शुरू करते हैं।
आगामी दक्षिण सरस्वती पूजा की तिथियाँ
डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।