संतान सप्तमी व्रत कथा

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संतान सप्तमी व्रत या संतान सप्तमी, एक हिंदू धार्मिक व्रत है जो माता संतान सिद्धि देवी की कृपा और आशीर्वाद के लिए किया जाता है। इस व्रत का महत्व महिलाओं द्वारा पुत्र प्राप्ति के लिए है, जो अपने वंश को बढ़ाना चाहती है।

संतान सप्तमी का व्रत संतान की खुशहाली और उनकी लंबी आयु के लिए रखा जाता है। यह व्रत माता पिता दोनों ही कर सकते हैं। इसे मुक्ता सप्तमी और दुबड़ी सप्तमी भी कहा जाता है। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। बता दें कि जिन महिलाओं को संतान सुख में बाधा आ रही है। उन्हें भी यह व्रत जरुर करना चाहिए। उनकी मनोकामना पूर्ण हो सकती है। लेकिन, संतान सप्तमी का व्रत इस कथा का पाठ के बिना अधूरा माना जाता है। यहां पढ़ें संतान सप्तमी की व्रत कथा। एक नगर में एक साहूकार रहता था उस साहूकार के सात बेटे थे, लेकिन,वह जिस भी बेटे का विवाह करता, वही मर जाता था। इस प्रकार उसके छह बेटे मर गए। अंत में उसके सातवें बेटे का भी विवाह तय हो गया। उसने सभी रिश्तेदारों को आमंत्रित किया। विवाह में शामिल होने के लिए लड़के की बुआ भी आ रही थी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। बुआ ने बुढ़िया के चरण-स्पर्श किए, तो उसने पूछा कि बेटी! कहां जा रही हो? बुआ ने उसे सब कुछ बता दिया सब कुछ जानने पर बुढ़िया ने कहा कि लड़का तो मर जाएगा। वह जैसे ही बारात के लिए घर से निकलेगा, घर का दरवाजा गिर जाएगा। यदि उससे बचेगा, तो भी जिस पेड़ के नीचे बारात रुकेगी, वह पेड़ गिर जाएगा, वहां से बचने पर जब वह ससुराल में प्रवेश करेगा, तो वहां का भी दरवाजा गिर जाएगा, उससे भी यदि बच गया, तो सातवीं भांवर पड़ते समय नाग आकर डस लेगा। बुआ बोली, हे माता! मेरा यह एक ही भतीजा बचा है। जब आपने इतने अनिष्टों की बात बताई है, तो कृपा करके रक्षा का उपाय भी बताएं। बुढ़िया जो स्वयं दुबड़ी माता थीं, बोली, बेटी! उपाय तो है पर है बहुत कठिना बुआ ने कहा, माता! कितना भी कठिन उपाय हो भतीजे की रक्षा के लिए मैं करूंगी। बुढ़िया बोली, बेटी! जब लड़का विवाह करने जाने लगे, तो उसे दरवाजे से न निकालकर दीवार फोड़कर निकलवाना, उसके बाद रास्ते में किसी - पेड़ के नीचे बारात को रुकने न देना। इसी प्रकार ससुराल में भी लड़के को इसी प्रकार ससुराल में भी लड़के को दीवार तोड़कर ही घर में प्रवेश करने तथा भांवरों के समय में कटोरे में दूध भरकर रख देना, जब नाग आकर दूध पीने लगे, तो उसको तांत के फांस में फंसा लेना। जब नागिन आकर अपने नाग को मांगे, तो तुम उससे अपने छहों भतीजों को मांग लेना। इस तरह तुम्हारा यह भतीजा तो जीवित बच ही जाएगा, पहले मरे हुए भतीजे भी जीवित हो जाएंगे, परन्तु इस बात को किसी से बताना नहीं; अन्यथा सुनने और कहने वाले दोनों मर जाएंगे और और भतीजे की भी मृत्यु हो जाएगी। बुढ़िया बनी दुबड़ी माता ने जैसे कहा था, मायके आकर बुआ ने वैसे ही किया। सभी घटनाएं दुबड़ी माता ने जैसे बताई थीं, वैसे ही घटीं, लेकिन, रक्षा का उपाय बता देने के कारण भतीजे की रक्षा हो गई और पहले मर चुके छहों भतीजे भी जीवित हो गए। दुबड़ी माता की कृपा से सब- कुछ आनंदमय हो गया। बारात लौटने पर बुआ ने सप्तमी को दुबड़ी माता की पूजा करवाई। हे दुबड़ी मैया! जैसे तुमने बुआ को सातों भतीजे दिए, वैसे ही सभी को संतान सुख देना।

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