डोल पूर्णिमा व्रत : तिथि, महत्व, पूजा विधि और धार्मिक कथा
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को डोल पूर्णिमा व्रत मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से राधा-कृष्ण की डोल यात्रा (झूला यात्रा) से जुड़ा है। इस दिन भक्तजन भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की शोभायात्रा निकालते हैं, जिसमें झांकी और झूलों का विशेष महत्व होता है।
डोल पूर्णिमा का महत्व
- डोल पूर्णिमा व्रत को फाल्गुन पूर्णिमा का ही विशेष स्वरूप माना जाता है।
- इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी को झूले में बैठाकर भक्तजन भक्ति भाव से झूलाते हैं।
- इसे विशेष रूप से बंगाल और उड़ीसा में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
- यह व्रत होली महोत्सव का ही प्रारंभिक रूप है और भक्त इसे भक्ति और प्रेम का पर्व मानते हैं।
डोल पूर्णिमा पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान कर के व्रत का संकल्प लें।
- भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की मूर्ति या चित्र को सजाकर झूले पर स्थापित करें।
- धूप, दीप, पुष्प, अबीर-गुलाल और भोग अर्पित करें।
- भक्तजन राधा-कृष्ण का कीर्तन और भजन करते हैं।
- संध्या समय डोल यात्रा का आयोजन किया जाता है।
डोल पूर्णिमा व्रत कथा
किंवदंती के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में रासलीला का आयोजन किया था। इस दिन गोकुल और वृंदावन के लोग भगवान कृष्ण और राधारानी को फूलों से सजे झूले पर बैठाकर नगर-परिक्रमा कराते हैं। इसीलिए इसे डोल पूर्णिमा कहा जाता है।
डोल पूर्णिमा व्रत से लाभ
- भक्त को भक्ति और प्रेम की शक्ति प्राप्त होती है।
- घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
- यह व्रत प्रेम, एकता और उत्सव का प्रतीक है।
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