देवोत्थान एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) व्रत कथा को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। यह कथा भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागने और धर्म तथा सृष्टि की पुनः रचना से जुड़ी हुई है। देवोत्थान एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इसे विष्णु प्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है।
देवोत्थान एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय में एक बार माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से पूछा, “प्रभु, आप वर्ष में चार मास योग निद्रा में क्यों जाते हैं? इस समय देवता, मानव, और समस्त सृष्टि आपके बिना कैसे कार्य करते हैं?” भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, “हे देवी, मेरी यह योग निद्रा सृष्टि के संतुलन के लिए आवश्यक है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मैं योग निद्रा में रहता हूं। इस समय सृष्टि का संचालन धर्म, तप, और भक्तों की श्रद्धा के बल पर चलता है। लेकिन जब मैं जागता हूं, तब सभी कार्य और अनुष्ठान पूर्णता को प्राप्त होते हैं।” जब भगवान विष्णु चार मास की योग निद्रा में चले गए, तो दानवों का आतंक बढ़ गया। धर्म और यज्ञ रुक गए, और सृष्टि में असंतुलन आ गया। देवताओं ने भगवान शिव और ब्रह्मा जी से सहायता मांगी। दोनों ने उन्हें धैर्य रखने को कहा और बताया कि भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागृत होंगे। नियत समय पर, जब कार्तिक शुक्ल एकादशी आई, तब सभी देवताओं ने मिलकर भगवान विष्णु का जागरण किया। उन्होंने शंख, घंटा, और वेद मंत्रों का उच्चारण करके भगवान विष्णु का आह्वान किया। भगवान विष्णु जागृत हुए और सभी देवताओं को आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा, “इस दिन जो भी व्यक्ति व्रत करेगा, वह मेरे परम धाम को प्राप्त करेगा। इस दिन से विवाह, यज्ञ, और शुभ कार्य पुनः आरंभ हो सकते हैं।” इस प्रकार, देवोत्थान एकादशी का पर्व भगवान विष्णु के जागने और शुभ कार्यों की शुरुआत का प्रतीक बन गया।व्रत का महत्व
- देवोत्थान एकादशी व्रत से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
- इस दिन व्रत करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं।
- यह दिन चार मास (चातुर्मास) के उपवास और तप का समापन भी है।
- इस व्रत के साथ तुलसी विवाह का भी विशेष महत्व है।
व्रत विधि
- प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- घर या मंदिर में भगवान विष्णु और तुलसी जी का पूजन करें।
- भगवान विष्णु को पंचामृत, फल, फूल, और तुलसी पत्र अर्पित करें।
- "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।
- दिनभर उपवास रखें और भजन-कीर्तन करें।
- रात्रि जागरण करें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
- द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें।