देवशयनी एकादशी (जिसे हरिशयनी एकादशी या पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है) हिंदू धर्म में एक प्रमुख व्रत और त्योहार है। यह आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, जो सामान्यतः जून या जुलाई के महीने में आती है। इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है, और मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और चार महीनों तक योगनिद्रा में रहते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें विवाह, उपनयन और अन्य मांगलिक कार्यों को निषिद्ध माना जाता है।
देवशयनी एकादशी का महत्व
भगवान विष्णु का शयन: इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा में चले जाते हैं। वे कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी (जिसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है) तक शयन करते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें धार्मिक कार्य, तपस्या, और साधना का विशेष महत्व होता है। चातुर्मास की शुरुआत: देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरुआत होती है। इस चार महीने की अवधि में सभी देवी-देवता भी विश्राम करते हैं। इस समय का उपयोग विशेष रूप से धर्म, भक्ति, और साधना के लिए किया जाता है। इस दौरान शुभ कार्यों (जैसे विवाह आदि) का आयोजन नहीं किया जाता है। व्रत का महत्व: देवशयनी एकादशी का व्रत अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाले भक्तों के लिए यह दिन विशेष रूप से शुभ होता है।देवशयनी एकादशी की कथा
देवशयनी एकादशी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में एक राजा मांधाता के राज्य में अकाल पड़ा, जिससे उनके राज्य की प्रजा परेशान हो गई। राजा ने इस संकट का समाधान जानने के लिए महर्षि अंगिरा से परामर्श लिया। महर्षि ने उन्हें आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा मांधाता ने महर्षि के कहे अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत किया, और इसके प्रभाव से उनके राज्य में वर्षा होने लगी और प्रजा के सभी कष्ट समाप्त हो गए। इस प्रकार, देवशयनी एकादशी व्रत को संकटों से मुक्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।देवशयनी एकादशी की पूजा विधि
व्रत और उपवास: इस दिन भक्त भगवान विष्णु के लिए उपवास रखते हैं। व्रत का पालन करने वाले भक्त प्रातः काल स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। व्रत उपवास का मुख्य उद्देश्य आत्मिक शुद्धि और भगवान के प्रति समर्पण होता है। पूजा और भजन: भक्त भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाते हैं और विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करते हैं। इस दिन विष्णु भगवान के भजन और कीर्तन का विशेष महत्व होता है। तुलसी की पूजा: भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ तुलसी का भी पूजन किया जाता है, क्योंकि तुलसी को विष्णु भगवान की प्रिय माना जाता है। तुलसी पत्र भगवान विष्णु को अर्पित करने से व्रत का विशेष फल प्राप्त होता है। रात्रि जागरण: कई भक्त इस दिन रात्रि जागरण करते हैं और भगवान विष्णु की आराधना में रत रहते हैं। माना जाता है कि जो भक्त पूरी श्रद्धा के साथ जागरण करते हैं, उन्हें विष्णु भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।देवशयनी एकादशी के लाभ
पापों से मुक्ति: देवशयनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को जीवन में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भक्ति और धर्म का पालन: इस व्रत के द्वारा भक्त भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण प्रकट करता है। यह व्रत व्यक्ति को धर्म के मार्ग पर चलने और जीवन में संयम, शांति, और संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है। आध्यात्मिक उन्नति: इस व्रत को करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है और वह भगवान के चरणों में आत्मसमर्पण करता है। यह व्रत उसे सांसारिक बंधनों से मुक्त होने और आत्मिक शांति प्राप्त करने में सहायता करता है।चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास की अवधि देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक होती है, जिसमें भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं। इस दौरान धार्मिक साधना, भक्ति, और व्रत का विशेष महत्व होता है। चातुर्मास में लोग भोग-विलास से दूर रहते हैं और आत्मसंयम का पालन करते हैं। इस अवधि में साधु-संत भी अपने आश्रमों में रहकर साधना और भक्ति में लीन रहते हैं। देवशयनी एकादशी हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है, जो भगवान विष्णु के शयन और चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है। यह व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाने वाला है, बल्कि भक्तों को जीवन में धर्म, भक्ति, और आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।आगामी एकादशी की तिथियाँ
- 01 नवंबर 2025, शनिवार देवउत्थान एकादशी
- 01 दिसंबर 2025, सोमवार मोक्षदा एकादशी
- 01 दिसंबर 2025, सोमवार गुरुवायूर एकादशी
- 15 दिसंबर 2025, सोमवार सफला एकादशी