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काल भैरवनाथ

bhairav

भैरव या भैरवनाथ भगवान शिव के एक उग्र और रौद्र रूप हैं, जिन्हें अत्यंत शक्तिशाली और भयावह माना जाता है। भैरव को संहार और विनाश का देवता कहा जाता है, जो अनीति और अधर्म का नाश करते हैं। वे शिव के गहन क्रोध और उग्रता का प्रतीक हैं, और इसलिए उन्हें भय और आक्रोश का अधिपति माना जाता है। भैरव की पूजा विशेष रूप से तांत्रिक साधना में महत्वपूर्ण मानी जाती है, जहाँ उनका आराधन साधक को बुराइयों और अज्ञानता से मुक्त कर सकता है।

भैरव का उत्पत्ति-वृत्तांत

भैरव की उत्पत्ति से जुड़ी कथा शिव पुराण में मिलती है। कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी ने स्वयं को सृष्टि का सर्वोच्च देवता मानते हुए भगवान शिव का अपमान किया। इस पर शिव ने अपने उग्र रूप को धारण किया और अपनी तृतीय आँख से भैरव को प्रकट किया। भैरव ने ब्रह्मा का अहंकार समाप्त करने के लिए उनका एक सिर काट दिया, क्योंकि ब्रह्मा ने पांच सिरों का घमंड किया था। इस घटना के बाद भगवान भैरव को "कपालेश्वर" भी कहा जाने लगा, क्योंकि उन्होंने ब्रह्मा का कपाल (सिर) धारण किया।

भैरव के प्रकार

भैरव के मुख्यतः आठ रूप माने जाते हैं, जिन्हें अष्ट भैरव कहा जाता है। ये सभी रूप सृष्टि के अलग-अलग तत्वों और शक्तियों का प्रतीक हैं।

1. असितांग भैरव 2. रुद्र भैरव 3. चंड भैरव 4. क्रोध भैरव 5. उन्मत्त भैरव 6. कपाल भैरव 7. भीषण भैरव 8. संहार भैरव

इनके अलग-अलग रूपों की पूजा तांत्रिक साधना और सुरक्षा के लिए की जाती है। प्रत्येक भैरव का अलग-अलग मंत्र, पूजा विधि और प्रभाव है।

भैरव का स्वरूप

भैरव का स्वरूप अत्यंत उग्र और भयावह होता है, जो उनके संहारक रूप को दर्शाता है:

शव वाहन: भैरव का वाहन श्वान (कुत्ता) है, जो मृत्यु और शमशान का प्रतीक है।

त्रिशूल और खड्ग: भैरव के हाथ में त्रिशूल और तलवार होती है, जो उनकी शक्ति और न्याय का प्रतीक हैं।

कपाल: भैरव अपने हाथों में कपाल (खोपड़ी) धारण करते हैं, जो संहार और जीवन-मृत्यु के चक्र का प्रतीक है।

भस्म विभूषित: उनके शरीर पर भस्म लगा होता है, जो शमशान और मृत्यु से जुड़े उनके संबंध को दर्शाता है।

काल भैरव

काल भैरव भैरव का सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली रूप है। उन्हें काल (समय) का स्वामी माना जाता है, और उनके इस रूप को जीवन और मृत्यु के चक्र का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। काल भैरव की पूजा समय और काल के बंधनों से मुक्त होने के लिए की जाती है।

वाराणसी में स्थित काल भैरव मंदिर बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ उनकी पूजा विशेष रूप से होती है। मान्यता है कि काशी के राजा स्वयं काल भैरव हैं और उनकी आज्ञा के बिना कोई भी व्यक्ति काशी छोड़ नहीं सकता।

भैरव पूजा और तांत्रिक साधना

भैरव की पूजा विशेष रूप से तंत्र साधना में महत्वपूर्ण मानी जाती है। तांत्रिक साधक भैरव की आराधना उनके आशीर्वाद और शक्ति प्राप्त करने के लिए करते हैं। माना जाता है कि भैरव की उपासना से भय, अज्ञानता, और बुरी शक्तियों से मुक्ति मिलती है। भैरव की पूजा के दौरान श्वान (कुत्तों) को भोजन कराया जाता है, क्योंकि उन्हें भैरव का वाहन माना जाता है।

भैरव अष्टमी

भैरव अष्टमी, भगवान भैरव को समर्पित पर्व है, जो मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इसे काल भैरव जयंती भी कहा जाता है, और इस दिन भक्त भैरव की विशेष पूजा, व्रत, और साधना करते हैं।

भैरव शिव के उग्र रूप का प्रतीक हैं, जो न केवल संहार करते हैं, बल्कि साधक को बुराइयों और आसुरी शक्तियों से मुक्ति भी दिलाते हैं। उनकी उपासना विशेष रूप से तंत्र साधना में की जाती है और उन्हें अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करने वाला माना जाता है। काल भैरव का स्वरूप समय और मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक है, और उनकी पूजा से व्यक्ति को अदम्य शक्ति और साहस प्राप्त होता है।

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