आश्विन पूर्णिमा व्रत : पूजा विधि, महत्व और शुभ फल
आश्विन पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार साल की सबसे महत्वपूर्ण पूर्णिमाओं में से एक है। यह व्रत मुख्य रूप से धार्मिक श्रद्धा और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर-अक्टूबर महीने में आती है।
आश्विन पूर्णिमा का महत्व
आश्विन पूर्णिमा का व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। इसे करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और मानसिक शांति आती है। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व है।
धार्मिक दृष्टि: यह दिन पितृदोष निवारण, पुण्य की प्राप्ति और धार्मिक क्रियाओं के लिए उत्तम है।
आध्यात्मिक दृष्टि: इस दिन व्रत और पूजा करने से मानसिक स्थिरता और आत्मिक शांति मिलती है।
आश्विन पूर्णिमा व्रत की विधि
- स्नान और शुद्धि: व्रत रखने वाले व्यक्ति को सुबह उठकर गंगा या किसी पवित्र जल से स्नान करना चाहिए।
- पूजा की तैयारी: घर की पूजा स्थल को स्वच्छ करके वहां दीपक, धूप, फूल और नैवेद्य लगाएँ।
- पूजा सामग्री:
- सुपारी, हल्दी, रोली
- नारियल, फलों का भोग
- दही, दूध और मिठाई
पूजा विधि:
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीपक जलाएँ।
- मंत्रोच्चारण के साथ उनका ध्यान करें।
- पूरे दिन फलाहार करें या निर्जला व्रत रखें।
आश्विन पूर्णिमा व्रत के लाभ
- जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- पितृदोष और कर्म के दोषों का निवारण होता है।
- मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- व्रत करने वाले को आध्यात्मिक बल और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
आश्विन पूर्णिमा का व्रत न केवल धार्मिक परंपरा का पालन है बल्कि यह आत्मिक शांति और समृद्धि का मार्ग भी खोलता है। श्रद्धा और भक्ति के साथ यह व्रत करने से जीवन में सुख, शांति और सफलता प्राप्त होती है।
शुभ तिथि: आश्विन मास की पूर्णिमा
शुभ रंग: पीला और सफेद
उपाय: इस दिन दान करना, जरूरतमंदों की मदद करना और माता लक्ष्मी का ध्यान करना अत्यंत लाभकारी होता है।
आगामी पूर्णिमा व्रत की तिथियाँ
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06 अक्टूबर 2025, सोमवार आश्विन पूर्णिमा व्रत
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05 नवंबर 2025, बुधवार कार्तिक पूर्णिमा व्रत
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04 दिसंबर 2025, गुरुवर मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत
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