आषाढ़ पूर्णिमा व्रत – पूजा विधि, कथा और महत्व

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हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को आषाढ़ पूर्णिमा व्रत किया जाता है। यह दिन विशेष रूप से गुरु पूजा, स्नान-दान और भगवान विष्णु की आराधना के लिए प्रसिद्ध है। इस दिन से चातुर्मास की भी शुरुआत होती है, जो आध्यात्मिक साधना और भक्ति के लिए अत्यंत शुभ काल माना जाता है।

आषाढ़ पूर्णिमा का महत्व

  • इस दिन गुरु पूजा और आचार्य वंदन का विशेष महत्व है।
  • गंगा स्नान और दान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
  • चातुर्मास व्रत की शुरुआत आषाढ़ पूर्णिमा से होती है।
  • धार्मिक कार्यों से पितरों और देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

आषाढ़ पूर्णिमा पूजा विधि

  1. प्रातःकाल पवित्र नदी या गंगा में स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
  2. गुरु, आचार्य या ब्राह्मण का पूजन एवं आशीर्वाद प्राप्त करें।
  3. भगवान विष्णु की पूजा करें और दीप-धूप अर्पित करें।
  4. दान-पुण्य करें जैसे अन्न, वस्त्र, तिल और गौदान।
  5. संध्या समय भजन-कीर्तन और दीपदान करें।

आषाढ़ पूर्णिमा व्रत कथा

पौराणिक मान्यता है कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु वंदन और विष्णु पूजा करने से ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति होती है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान वेदव्यास ने महाभारत का लेखन आरंभ किया था। इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

आषाढ़ पूर्णिमा व्रत से लाभ

  1. ज्ञान, भक्ति और आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है।
  2. गुरु और आचार्य की कृपा से जीवन में सफलता मिलती है।
  3. सभी प्रकार के पाप नष्ट होकर पुण्य की प्राप्ति होती है।
  4. पितृ और देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।

विशेष पूजा और दान

  • पूजा का समय: प्रातःकाल स्नान के बाद गुरु वंदन और संध्या काल में दीपदान।
  • आवश्यक सामग्री: गंगाजल, पुष्प, तिल, वस्त्र, दीपक, फल और मिष्ठान्न।
  • दान का महत्व: अन्न, गौ, वस्त्र और सोने का दान करना अत्यंत पुण्यकारी है।
महत्व: आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु वंदन और विष्णु पूजा करने से जीवन में ज्ञान, धर्म और भक्ति की वृद्धि होती है। यह दिन गुरु कृपा और चातुर्मास व्रत की शुरुआत के लिए अत्यंत शुभ है।

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