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पंचांग :विष्टि करण

विष्टि करण (जिसे विष्टि या भद्रा भी कहा जाता है) पंचांग में 11 करणों में से एक है और इसे विशेष रूप से अशुभ माना जाता है। इसे ज्योतिष शास्त्र में महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इसमें किए गए कार्यों में अवरोध, रुकावट, या नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।

विष्टि करण का महत्व और प्रभाव

अशुभ कार्यों से बचना: विष्टि करण में किसी भी शुभ कार्य, जैसे विवाह, यात्रा, नया कार्य प्रारंभ, या महत्वपूर्ण निर्णय लेने से बचना चाहिए। असफलता की संभावना: इस करण में किए गए कार्यों में रुकावट या असफलता की संभावना अधिक रहती है। अप्रत्याशित घटनाएं: इस समय में किए गए कार्यों में अप्रत्याशित घटनाएं और समस्याएं आ सकती हैं, इसलिए इसे भद्रा काल कहा जाता है, और विशेष ध्यान रखने की सलाह दी जाती है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण

विष्टि करण का समय भद्रा काल के नाम से जाना जाता है, जिसमें कोई भी शुभ कार्य करना निषेध माना गया है। यह करण किसी भी अमावस्या या पूर्णिमा से पहले आते हुए मुख्यत: त्रयोदशी और चतुर्दशी तिथियों पर पड़ता है। नोट: विष्टि करण में, मन को शांत और संयमित रखना चाहिए। साथ ही, नकारात्मक विचारों से बचते हुए इस काल का प्रयोग आत्मचिंतन और शांति में करना लाभकारी होता है।
डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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