संकटा माता व्रत भक्तों के संकटों को दूर करने और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से प्रत्येक माह के चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत में संकटों से रक्षा करने वाली देवी संकटा माता की पूजा-अर्चना की जाती है। देवी संकटा की कृपा से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
संकटा माता व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है, एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहता था। वह अत्यंत धार्मिक था लेकिन निर्धनता के कारण परिवार को भोजन जुटाने में भी कठिनाई होती थी।
एक दिन ब्राह्मण ने दुखी होकर देवी संकटा माता का व्रत रखने का संकल्प लिया। उसने नियमपूर्वक माता का व्रत किया और उनकी विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की। माता संकटा उसकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उसे दर्शन देकर वरदान दिया।
माता ने कहा, "हे ब्राह्मण! तुम्हारे व्रत और पूजा से मैं प्रसन्न हूं। अब तुम्हारे जीवन से सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। तुम्हें धन, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होगी।"
माता के आशीर्वाद से ब्राह्मण का जीवन बदल गया। उसकी निर्धनता समाप्त हो गई और उसके परिवार को सुख-समृद्धि की प्राप्ति हुई। तभी से यह व्रत भक्तों के संकटों को दूर करने और जीवन को सुखमय बनाने के लिए प्रसिद्ध हुआ।
संकटा माता व्रत की विधि
- स्नान और शुद्धि: प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- व्रत का संकल्प: देवी संकटा माता के समक्ष व्रत का संकल्प लें।
- पूजा की तैयारी: माता की मूर्ति या चित्र को साफ स्थान पर स्थापित करें।
- पूजन सामग्री: लाल फूल, चंदन, रोली, अक्षत, नारियल, फल, और मिठाई चढ़ाएं।
- मंत्र जाप: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं संकटा मातायै नमः।
- कथा श्रवण: संकटा माता व्रत कथा को श्रद्धा से पढ़ें या सुनें।
- आरती और प्रसाद: देवी की आरती करें और प्रसाद बांटें।
- व्रत का पालन: दिनभर फलाहार करें और रात्रि में माता के नाम का जागरण करें।
- पारण: अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन और दान देकर व्रत का समापन करें।
व्रत का महत्व
- इस व्रत को करने से जीवन के सभी संकट और बाधाएं समाप्त होती हैं।
- देवी संकटा की कृपा से भक्त को धन, स्वास्थ्य, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- व्रतधारी को मानसिक शांति और मोक्ष का आशीर्वाद मिलता है।
- यह व्रत कठिन समय में साहस और आत्मबल प्रदान करता है।
संकटा माता की जय!