शकुनि करण हिंदू पंचांग में एक करण का नाम है। करण तिथि का आधा भाग होता है, और कुल 11 करण होते हैं। शकुनि करण का उपयोग शुभ और अशुभ कार्यों को तय करने में किया जाता है।
शकुनि करण की विशेषताएँ
प्रकृति
शकुनि करण को सामान्यतः तटस्थ माना जाता है। यह न तो अत्यधिक शुभ है और न ही अत्यधिक अशुभ।
उपयोगिता
दैनिक जीवन के सामान्य कार्यों के लिए यह करण अनुकूल माना जाता है। परंतु महत्वपूर्ण और शुभ कार्यों (जैसे विवाह, गृह प्रवेश) के लिए यह करण शुभ नहीं माना जाता।
गणना
शकुनि करण हर चंद्र मास में दो बार आता है। यह पंचांग के अन्य घटकों जैसे तिथि, नक्षत्र, योग, और वार के साथ मिलकर दिन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
शकुनि करण के दौरान सावधानियाँ
इस करण के दौरान अत्यधिक महत्व के या दीर्घकालिक प्रभाव वाले कार्यों को करने से बचना चाहिए।
किसी भी कार्य की शुभता पंचांग के अन्य घटकों पर भी निर्भर करती है।
यदि आपको शकुनि करण के समय पर किसी विशेष कार्य की योजना बनानी हो, तो किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श करना उचित रहेगा।
डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।