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नरक चतुर्दशी : महत्व, कथा और पूजा विधि | छोटी दिवाली विशेष जानकारी

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नरक चतुर्दशी, जिसे काली चौदस, छोटी दीपावली, या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। यह दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव का दूसरा दिन होता है, और इसका विशेष महत्व है क्योंकि इसे नरकासुर के वध और बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

नरक चतुर्दशी की कथा:

प्राचीन हिंदू कथा के अनुसार, एक दुष्ट राक्षस नरकासुर ने धरती पर आतंक मचा रखा था। उसने कई देवताओं को हराकर उनकी रानियों को बंदी बना लिया था। जब उसकी बुराइयाँ बढ़ गईं, तो देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने भगवान श्रीकृष्ण के रूप में नरकासुर का वध किया और उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। नरकासुर की मृत्यु के बाद, भगवान श्रीकृष्ण ने रानियों को मुक्त किया और उन्हें सम्मानपूर्वक उनके घर भेजा। यह विजय अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है, और इसी उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाता है।

नरक चतुर्दशी का महत्व

आत्मशुद्धि और बुराई का नाश:इस दिन को बुराई, आलस्य और नकारात्मकता से छुटकारा पाने का प्रतीक माना जाता है। यह व्यक्ति के जीवन से बुराइयों का अंत और आत्मशुद्धि का समय है। स्नान और रूप सौंदर्य का महत्व: नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने की परंपरा है, जिसे 'अभ्यंग स्नान' कहा जाता है। इस स्नान के दौरान शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करने से शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है। माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति नरक के कष्टों से मुक्त हो जाता है और उसे सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। रूप सौंदर्य की पूजा:इस दिन को रूप चौदस भी कहा जाता है क्योंकि लोग इस दिन विशेष रूप से अपने सौंदर्य पर ध्यान देते हैं। इसे रूप और सौंदर्य के देवता की आराधना का दिन भी माना जाता है।

नरक चतुर्दशी की पूजा विधि

अभ्यंग स्नान:सूर्योदय से पहले तिल के तेल से स्नान करना इस दिन की प्रमुख परंपरा है। इस स्नान को अभ्यंग स्नान कहा जाता है। शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करना शारीरिक और मानसिक शुद्धि का प्रतीक है। दीप जलाना:घर में दीये जलाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। माना जाता है कि इस दिन यमराज के लिए दीप जलाने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है। हनुमान पूजा:नरक चतुर्दशी के दिन हनुमान जी की पूजा करना भी शुभ माना जाता है। हनुमान जी को सिंदूर और तेल अर्पित करके उनकी आराधना की जाती है। भोग और प्रसाद:इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया जाता है, जिसमें मुख्य रूप से मिठाइयाँ और फल होते हैं। फिर इस प्रसाद को घर के सभी सदस्यों में बांटा जाता है। काली पूजा:नरक चतुर्दशी को कुछ स्थानों पर काली चौदस भी कहा जाता है, जहाँ काली माता की पूजा की जाती है। देवी काली को बुराई का नाश करने वाली शक्ति माना जाता है, और इस दिन उनकी आराधना की जाती है।

नरक चतुर्दशी से जुड़ी मान्यताएँ

इस दिन सूर्योदय से पहले अभ्यंग स्नान करने से जीवन में सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यमराज के लिए दीप जलाने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन हनुमान जी की पूजा से शत्रुओं पर विजय और संकटों से छुटकारा मिलता है।

नरक चतुर्दशी से जुड़ी विशेष परंपराएँ

इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह स्नान न केवल शारीरिक शुद्धि का प्रतीक है, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि का भी महत्व रखता है। घर की साफ-सफाई करके दीप जलाना और परिवार के सदस्यों के साथ पूजा करना समृद्धि और खुशहाली का संकेत माना जाता है। नरक चतुर्दशी न केवल शारीरिक और मानसिक शुद्धि का पर्व है, बल्कि यह व्यक्ति को जीवन में नए उत्साह और नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

आगामी नरक चतुर्दशी की तिथियाँ
  • 08 नवंबर 2026, रविवर
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