नाग पंचमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो नाग देवताओं (सांपों) की पूजा के लिए समर्पित है। इसे श्रावण महीने (जुलाई-अगस्त) की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा कर उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त की जाती है और उनके आशीर्वाद की कामना की जाती है। नाग पंचमी विशेष रूप से भारत के विभिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाई जाती है।
नाग पंचमी का महत्व
सांपों का सम्मान: नाग पंचमी का पर्व सांपों के प्रति सम्मान और आदर का प्रतीक है। यह दिन हमें प्रकृति और जीव-जंतुओं के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करता है।
सुरक्षा और संरक्षण: नागों की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं और उनके दंश से बचाव होता है। इस दिन लोग अपने परिवार और घर की सुरक्षा की कामना करते हैं।
कृषि और वर्षा: नाग पंचमी का संबंध कृषि और वर्षा से भी है। इसे वर्षा ऋतु के आगमन के रूप में देखा जाता है और अच्छी फसल की प्रार्थना की जाती है।
नाग पंचमी की पूजा विधि
स्नान और शुद्धिकरण: प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
नाग देवता की मूर्ति या चित्र: नाग देवता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। कुछ स्थानों पर मिट्टी से बने नाग की मूर्ति का उपयोग किया जाता है।
पूजा की तैयारी: पूजा की थाली में धूप, दीप, चंदन, पुष्प, दूध, दूर्वा (दूर्वा घास), हल्दी, कुंकुम और नैवेद्य रखें।
नाग देवता का अभिषेक: नाग देवता की मूर्ति का अभिषेक दूध, दही, शहद, गंगाजल और गुलाबजल से करें।
पूजा और आरती: नाग देवता की पूजा करें और उनकी आरती उतारें। नाग पंचमी के विशेष मंत्रों का जाप करें।
दूध और अन्न का अर्पण: नाग देवता को दूध, अन्न और अन्य खाद्य सामग्री अर्पित करें।
नागों की मूर्तियों का निर्माण: कुछ स्थानों पर महिलाएं गोबर से नागों की मूर्तियाँ बनाकर उनकी पूजा करती हैं।
सर्पगंधा के पेड़ की पूजा: कुछ स्थानों पर सर्पगंधा (सर्प संजीवनी) के पेड़ की पूजा भी की जाती है।
नाग पंचमी की कथा
नाग पंचमी से जुड़ी कई कथाएँ हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा निम्नलिखित है:
जनमेजय और सर्पयज्ञ
महाभारत के अनुसार, राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्पों के वंशजों से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए एक विशाल सर्पयज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सभी सर्प अग्नि में भस्म हो रहे थे। तब सर्पों की रानी नागमाता मनसा देवी ने अपनी बहन जरत्कारु को सर्पों की रक्षा के लिए भेजा। जरत्कारु ने अपने पुत्र आस्तिक को यज्ञ स्थल पर भेजा।
आस्तिक ने यज्ञ स्थल पर पहुंचकर जनमेजय को अपने ज्ञान और भक्ति से प्रभावित किया। आस्तिक ने जनमेजय से सर्पों के वध को रोकने की प्रार्थना की। जनमेजय ने आस्तिक की प्रार्थना स्वीकार की और यज्ञ को रोक दिया। इस प्रकार सर्पों की रक्षा हुई और इस दिन को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाने लगा।
नाग पंचमी हमें प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति आदर और सम्मान का महत्व सिखाती है। इस दिन की पूजा और व्रत से नाग देवता की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शांति, सुख और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।नाग पंचमी का पर्व सांपों के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। इस दिन नाग देवताओं की पूजा करके उनके आशीर्वाद की कामना करें और अपने परिवार और घर की सुरक्षा की प्रार्थना करें।