मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत : पूजा विधि, महत्व और शुभ फल

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मार्गशीर्ष पूर्णिमा हिन्दू पंचांग की महत्वपूर्ण पूर्णिमाओं में से एक है। यह व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसे धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ के लिए रखा जाता है। आमतौर पर यह नवंबर–दिसंबर महीने में पड़ती है।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व

मार्गशीर्ष पूर्णिमा को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की विशेष पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  • धार्मिक महत्व: इस दिन व्रत और पूजा करने से पितृदोष और अन्य कर्म दोषों का निवारण होता है।
  • आध्यात्मिक महत्व: यह दिन आत्मिक शुद्धि, मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा के लिए उत्तम है।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत की विधि

  1. स्नान और शुद्धि: व्रती को सुबह उठकर पवित्र जल से स्नान करना चाहिए।
  2. पूजा स्थल की तैयारी: घर में पूजा स्थल को स्वच्छ करें और दीपक, धूप, पुष्प और नैवेद्य लगाएँ।
  3. पूजा सामग्री:
    • दीपक, धूप और पुष्प
    • नारियल, फल और मिठाई
    • हल्दी, रोली और सुपारी

पूजा विधि:

  1. भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें।
  2. मंत्रोच्चारण और भजन-कीर्तन के साथ ध्यान लगाएँ।
  3. पूरे दिन फलाहार या निर्जला व्रत रखा जा सकता है।
  4. दान और सेवा: जरूरतमंदों को दान देना और किसी धार्मिक स्थल पर सेवा करना अत्यंत लाभकारी होता है।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत के लाभ

  1. जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  2. पितृदोष और अन्य दोषों का निवारण होता है।
  3. मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  4. आध्यात्मिक बल और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह व्रत न केवल धार्मिक परंपरा का पालन है, बल्कि आत्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रदान करता है।
  • शुभ तिथि: मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा शुभ रंग: पीला और सफेद उपाय: इस दिन दान, सेवा और भगवान विष्णु की पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।

आगामी पूर्णिमा व्रत की तिथियाँ
  • 06 अक्टूबर 2025, सोमवार आश्विन पूर्णिमा व्रत
  • 05 नवंबर 2025, बुधवार कार्तिक पूर्णिमा व्रत
  • 04 दिसंबर 2025, गुरुवर मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत
  • 03 जनवरी 2026, शनिवार पौष पूर्णिमा व्रत
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