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प्रकृति

कृपा की न होती जो आदत तुम्हारी

मैं रूप तेरे पर, आशिक हूँ, यह दिल तो तेरा, हुआ दीवाना ठोकर खाई, दुनियाँ में बहुत, मुझे द्वार से, अब न ठुकराना हर तरह से तुम्हारा, हुआ मैं तो, फिर क्यों तुमको, मैं बेगाना मुझे दरस दिखा दो, नंद लाला, नहीं तो दर तेरे पर, मर जाना कृपा की न होती जो, आदत तुम्हारी तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी गोपाल सहारा तेरा है , हे नंद लाल सहारा तेरा है , मेरा और सहारा कोई नहीं गोपाल सहारा तेरा है , हे नंद लाल सहारा तेरा है ..... ओ दीनो के दिल में, जगह तुम न पाते तो किस दिल में होती, हिफाजत तुम्हारी कृपा की न होती जो,,, ग़रीबों की दुनियाँ है, आबाद तुमसे , ग़रीबों से है, बादशाहत तुम्हारी , कृपा की न होती जो..... न मुल्जिम ही होते, न तुम होते हाकिम, न घर-घर में होती, इबादत तुम्हारी , कृपा की न होती जो,,, तुम्हारी ही उल्फ़त के, द्रिग ‘बिन्दु’ हैं यह , तुम्हें सौंपते है, अमानत तुम्हारी , कृपा की न होती जो......
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