हमने आंगन नही बहारा चंचल मन को नही सहारा
कैसे आयेंगे भगवान कैसे आयेंगे भगवान
घर को नेकल मसकसाय की लगी हुयी है ढेरी
नही ज्ञान की किरण कही भी हर खोठरी अँधेरी
आंगन चौबारा अंधियारा कैसे आयेंगे भगवान
कैसे आयेंगे भगवान कैसे आयेंगे भगवान
हमने आंगन नही बहारा कैसे आयेंगे भगवान
ह्रदय हमारा पिघल ना पाया जब देखा दुखियारा
किसी पंथ भूले ने तुमसे पाया नही सहारा
सुखी है करुना की धारा कैसे आयेंगे भगवान
हमने आंगन नही बहारा चंचल मन को नही सहारा
कैसे आयेंगे भगवान कैसे आयेंगे भगवान
निर्मल मन हो तो रघुरायक शबरी के घर जाते
श्याम सुर की बाह पकड़कर साग भी धुरधर आये
इसपे तुमने नही बिचारा इस्पे हमने नही बिचारा
कैसे आयेंगे भगवान कैसे आयेंगे भगवान
हमने आंगन नही बहारा चंचल मन को नही सहारा
कैसे आयेंगे भगवान कैसे आयेंगे भगवान