रघुरायक - हमने आंगन नही बहारा कैसे आयेंगे भगवान
हमने आंगन नही बहारा चंचल मन को नही सहारा
कैसे आयेंगे भगवान कैसे आयेंगे भगवान
घर को नेकल मसकसाय की लगी हुयी है ढेरी
नही ज्ञान की किरण कही भी हर खोठरी अँधेरी
आंगन चौबारा अंधियारा कैसे आयेंगे भगवान
कैसे आयेंगे भगवान कैसे आयेंगे भगवान
हमने आंगन नही बहारा कैसे आयेंगे भगवान
ह्रदय हमारा पिघल ना पाया जब देखा दुखियारा
किसी पंथ भूले ने तुमसे पाया नही सहारा
सुखी है करुना की धारा कैसे आयेंगे भगवान
हमने आंगन नही बहारा चंचल मन को नही सहारा
कैसे आयेंगे भगवान कैसे आयेंगे भगवान
निर्मल मन हो तो रघुरायक शबरी के घर जाते
श्याम सुर की बाह पकड़कर साग भी धुरधर आये
इसपे तुमने नही बिचारा इस्पे हमने नही बिचारा
कैसे आयेंगे भगवान कैसे आयेंगे भगवान
हमने आंगन नही बहारा चंचल मन को नही सहारा
कैसे आयेंगे भगवान कैसे आयेंगे भगवान
डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।