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होलिका की कथा - बुराई पर अच्छाई की विजय की प्रेरक कथा

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होलिका दहन का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह मुख्य रूप से भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद और उनके पिता, असुरराज हिरण्यकश्यप की कहानी से जुड़ा हुआ है।

कथा का विवरण

हिरण्यकश्यप ने घोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि न उसे कोई मनुष्य मार सकता है, न पशु; न दिन में, न रात में; न धरती पर, न आकाश में। इस वरदान के कारण वह अहंकारी और अत्याचारी बन गया। उसने अपनी प्रजा को आदेश दिया कि केवल उसकी पूजा की जाए। हालांकि, हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु का परम भक्त था। उसने अपने पिता की इच्छाओं के खिलाफ जाकर भगवान विष्णु की भक्ति करना जारी रखा। इससे हिरण्यकश्यप क्रोधित हो गया और उसने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार प्रह्लाद को भगवान विष्णु की कृपा से बचा लिया गया।
होलिका का योगदान
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि से कोई हानि नहीं होगी। हिरण्यकश्यप ने योजना बनाई कि होलिका, प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई अग्नि में बैठ जाए, जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए। लेकिन होलिका के वरदान का प्रभाव तब समाप्त हो गया, जब उसने इसका दुरुपयोग किया। अग्नि में होलिका जलकर राख हो गई, जबकि भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा।
होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह त्योहार यह संदेश देता है कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है, जबकि सत्य और धर्म की सदा जीत होती है।
होली का उत्सव
होलिका दहन के अगले दिन होली का रंगों का त्योहार मनाया जाता है, जो प्रेम, भाईचारे और एकता का प्रतीक है।
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