अमृत है हरी नाम जगत में
इसे छोड़ विषय विष पीना क्या
हरी नाम नही तो जीना क्या
काल सदा अपने रस डोले
ना जाने कब सिर चढ़ बोले
हरी का नाम जपो निसवासर
इसमें अब बरस महिना क्या
हरी नाम नही तो जीना क्या
तीरथ है हरी नाम हमारा
फिर क्यों फिरता मारा मारा
अंत समय हरी नाम ना आवे
तो काशी और मदीना क्या
हरी नाम नही तो जीना क्या
भूषण से सब अंग सजावे
रसना हरी नाम ना आये
देह पड़ी रह जाये यही पर
फिर कुंडल और नगीना क्या
हरी नाम नही तो जीना क्या
अमृत है हरी नाम जगत में
इसे छोड़ विषय विष पीना क्या
हरी नाम नही तो जीना क्या