भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, सिद्धिदाता और मंगलकारी देवता कहा गया है। उनकी आराधना हर शुभ कार्य से पहले की जाती है।
यह श्लोक — “नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं...” — भगवान गणेश की महिमा और उनकी दिव्यता का वर्णन करता है।
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥
शब्दार्थ और अर्थ
- नतेतरातिभीकरं: जो शत्रुओं और बुरे कर्मों के लिए भयानक हैं, किंतु भक्तों के लिए करुणामय।
- नवोदितार्कभास्वरं: जो नवोदित सूर्य के समान तेजस्वी हैं।
- नमत्सुरारिनिर्जरं: जिनके आगे देवराज इन्द्र सहित सभी देवता नमस्कार करते हैं।
- नताधिकापदुद्धरम्: जो संकटग्रस्त भक्तों को विपत्ति से निकालते हैं।
- सुरेश्वरं: देवताओं के स्वामी।
- निधीश्वरं: धन और ऐश्वर्य के दाता।
- गजेश्वरं: गजमुख वाले भगवान गणेश।
- गणेश्वरं: समस्त गणों के अधिपति।
- महेश्वरं: महान और सर्वश्रेष्ठ ईश्वर।
- परात्परं निरन्तरम्: जो सर्वोच्च और शाश्वत हैं।
भावार्थ
इस श्लोक में भगवान गणेश की दिव्यता और शक्ति का गुणगान किया गया है। वे सभी संकटों को दूर करने वाले, धन और ज्ञान के दाता, तथा भक्ति मार्ग के रक्षक हैं। उनका तेज नवोदित सूर्य के समान उज्ज्वल है और वे अपने भक्तों के सभी दुःख हर लेते हैं।मंत्र का महत्व
इस श्लोक का नियमित पाठ जीवन से नकारात्मकता को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभदायक है जो भय, मानसिक तनाव या आर्थिक कठिनाइयों से गुजर रहे हों।जप विधि
- प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें।
- गणेश जी के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक जलाएं।
- 11 या 21 बार इस श्लोक का उच्चारण करें।
- मनोयोगपूर्वक प्रार्थना करें कि सभी विघ्न दूर हों और जीवन में सफलता प्राप्त हो।
लाभ
- सभी प्रकार के भय और विघ्नों से मुक्ति।
- आर्थिक स्थिरता और समृद्धि में वृद्धि।
- मन की शांति और आध्यात्मिक उन्नति।
- जीवन में शुभता और सफलता का आगमन।