“शुक्लाम्बरधरं विष्णुं” एक अत्यंत पवित्र और शुभ विघ्ननाशक श्लोक है,
जो किसी भी शुभ कार्य, पूजा, या यज्ञ से पहले भगवान श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए पढ़ा जाता है।
यह श्लोक भगवान गणेश के शांत, प्रसन्न और बुद्धिदायक स्वरूप का ध्यान कराने वाला मंत्र है।
मंत्र
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अर्थ (Meaning)
यह वैदिक मंत्र ऋग्वेद से लिया गया है। इसमें देवताओं से मंगलकामना की गई है — इंद्र से शक्ति और विजय, पूषा से समृद्धि और मार्गदर्शन, तार्क्ष्य (गरुड़) से सुरक्षा, और बृहस्पति से ज्ञान और बुद्धि की प्रार्थना की जाती है। मंत्र का सार यह है कि — सभी देवता हमें कल्याण, शांति और शुभ फल प्रदान करें।महत्व (Significance)
- शुक्लाम्बरधरं — जो सफेद वस्त्र धारण करते हैं, शुद्धता और सत्त्व का प्रतीक।
- विष्णुं — जो सर्वव्यापक हैं, सभी में व्याप्त शक्ति।
- शशिवर्णं — चंद्रमा के समान शीतल और शुद्ध।
- चतुर्भुजम् — चार भुजाओं वाले, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- प्रसन्नवदनं — सदैव मुस्कुराते हुए, शांति और प्रसन्नता के दाता।
- सर्वविघ्नोपशान्तये — सभी बाधाओं को शांत करने हेतु।
महत्व (Significance)
यह मंत्र प्रायः यज्ञ, पूजा, हवन या नए कार्यों की शुरुआत से पहले बोला जाता है ताकि वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा और शांति बनी रहे। “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः” के उच्चारण से मानसिक, दैविक और भौतिक — तीनों स्तरों पर शांति की प्रार्थना की जाती है।लाभ (Benefits)
- मन और वातावरण को शुद्ध करता है।
- नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
- किसी शुभ कार्य या नई शुरुआत से पहले शांति और सफलता का आशीर्वाद दिलाता है।
- परिवार और समाज में मंगलमय वातावरण उत्पन्न करता है।
॥ श्री गणेशाय नमः ॥