दुर्गा बलिदान – महत्व, पूजा विधि और परंपरा

durga

दुर्गा बलिदान दुर्गा पूजा के समय किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, विशेषकर पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा में। इसे शक्ति की देवी दुर्गा को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। परंपरागत रूप से बलिदान में पशु की आहुति दी जाती थी, लेकिन आजकल इसकी जगह प्रतीकात्मक बलिदान किया जाता है जैसे कुम्हड़ा, नारियल या शकरकंद चढ़ाना। यह अनुष्ठान महानवमी या अष्टमी के दिन विशेष रूप से किया जाता है और इसे शक्ति की विजय और भक्त की भक्ति का प्रतीक माना जाता है।

महत्व

  • दुर्गा बलिदान को शक्ति की पूजा का अभिन्न अंग माना जाता है।
  • यह अहंकार, बुराइयों और नकारात्मकता को समाप्त करने का प्रतीक है।
  • बंगाल में इसे शक्ति के प्रति पूर्ण समर्पण की परंपरा से जोड़ा जाता है।
  • बलिदान से भक्त देवी दुर्गा से साहस, समृद्धि और शक्ति की कामना करता है।

पूजा विधि

  • बलिदान प्रातःकाल या पूजा के शुभ मुहूर्त में किया जाता है।
  • पारंपरिक रूप से बकरा या भैंसा का बलिदान होता था, अब इसकी जगह फल या सब्जी का उपयोग होता है।
  • बलिदान के बाद देवी को भोग, पुष्प और धूप अर्पित किए जाते हैं।
  • हवन और मंत्रोच्चारण के साथ बलिदान की प्रक्रिया पूर्ण की जाती है।

आगामी दुर्गा बलिदान की तिथियाँ
  • 01 अक्टूबर 2025, बुधवार
डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

© https://www.nakshatra.appAll Rights Reserved.