वामन अवतार भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों (दशावतार) में से एक है। यह अवतार भगवान विष्णु ने त्रेता युग में लिया था। वामन अवतार का उद्देश्य राजा बलि के गर्व और अहंकार का नाश करना और देवताओं को उनके अधिकार पुनः दिलाना था।
वामन अवतार की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि कश्यप और अदिति के पुत्रों में देवताओं के राजा इंद्र भी थे। एक बार, असुरों के राजा महाबली ने अपने पराक्रम से देवताओं को हराकर स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। राजा बलि महान दानी और धर्मात्मा थे, लेकिन उनका अभिमान अत्यधिक बढ़ गया था।
राजा बलि ने यज्ञ का आयोजन किया ताकि वह त्रिलोक पर अपना अधिकार बनाए रख सके। देवता, जो स्वर्गलोक से निर्वासित हो चुके थे, अत्यंत चिंतित थे। उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।
भगवान विष्णु ने समस्या का समाधान करने के लिए वामन (एक छोटे ब्राह्मण बालक) का रूप धारण किया। वे राजा बलि के यज्ञ में पहुँचे। वामन रूप में भगवान विष्णु अत्यंत तेजस्वी और सुंदर दिखाई दे रहे थे।
यज्ञ में पहुँचकर वामन ने राजा बलि से दान माँगा। उन्होंने कहा, "हे राजा, मुझे सिर्फ तीन पग भूमि चाहिए।"
राजा बलि ने विनम्रता से कहा, "हे ब्राह्मण देवता, मैं आपको तीन पग भूमि से अधिक भी दे सकता हूँ।"
वामन ने उत्तर दिया, "मुझे केवल उतनी भूमि चाहिए, जितनी मैं तीन पग में नाप सकूँ।"
राजा बलि ने वामन की यह विनती स्वीकार कर ली और दान की स्वीकृति दे दी। तभी वामन ने अपना विराट रूप धारण कर लिया। अपने पहले पग में उन्होंने पृथ्वी को नापा, दूसरे पग में आकाश को, और तीसरे पग के लिए कोई स्थान बचा ही नहीं।
तब राजा बलि ने अपनी विनम्रता और समर्पण का परिचय देते हुए कहा, "हे प्रभु, अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रखें।"
वामन ने राजा बलि के सिर पर अपना तीसरा पग रखा और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया। राजा बलि का गर्व समाप्त हो गया, और उन्होंने वामन अवतार के भगवान विष्णु को सच्चे हृदय से स्वीकार कर लिया।
वामन अवतार का महत्व
अहंकार का नाश
यह कथा सिखाती है कि अहंकार व्यक्ति के पतन का कारण बनता है।
दान और धर्म
राजा बलि का दानशील और धर्मप्रिय स्वभाव प्रेरणा देता है।
समर्पण और भक्ति
भगवान विष्णु के प्रति बलि का समर्पण और भक्ति अनुकरणीय है।
धर्म की पुनर्स्थापना
वामन अवतार का उद्देश्य धर्म की रक्षा और संतुलन बनाए रखना था।
वामन अवतार से जुड़ा संदेश
वामन अवतार हमें यह सिखाता है कि अपने कर्मों में धर्म और सत्य का पालन करना चाहिए। अहंकार से बचना और ईश्वर के प्रति समर्पण रखना ही सच्चा जीवन है।
जय वामन देव!