November 7, 2024, Thursday, को कार्तिक, शुक्ल षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी है।
स्कंद षष्ठी हिंदू धर्म में भगवान कार्तिकेय (स्कंद) को समर्पित एक प्रमुख पर्व है, जिसे विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, और दक्षिण भारत के अन्य क्षेत्रों में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। स्कंद षष्ठी को 'सुब्रमण्य षष्ठी' के नाम से भी जाना जाता है।
स्कंद षष्ठी का महत्व
स्कंद षष्ठी का पर्व भगवान कार्तिकेय द्वारा असुर सुरापद्म का वध कर संसार को उसके आतंक से मुक्त करने की विजय के रूप में मनाया जाता है। भगवान कार्तिकेय को शक्ति, युद्ध-कला, और साहस का देवता माना जाता है। इस दिन उन्हें शक्ति, साहस, और बुराई पर विजय प्राप्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
पूजा विधि
व्रत:
स्कंद षष्ठी के दिन भक्त निर्जला व्रत रखते हैं, जिसमें पानी और भोजन का त्याग किया जाता है। यह व्रत कई लोग संपूर्ण दिन और रात्रि रखते हैं और अगले दिन व्रत का पारण करते हैं।
पूजा और अर्चना:
भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा या तस्वीर को साफ स्थान पर रखकर फूल, धूप, दीप, और मिठाई चढ़ाई जाती है। भक्त भगवान कार्तिकेय के विशेष मंत्रों का जाप करते हैं।
पाठ और कीर्तन:
स्कंद षष्ठी पर भगवान कार्तिकेय की महिमा का गान, कथा पाठ और भजन-कीर्तन किया जाता है।
साधना और ध्यान:
इस दिन भगवान स्कंद की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है। भक्त ध्यान और साधना द्वारा भगवान कार्तिकेय से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
स्कंद षष्ठी व्रत का फल
स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से जीवन में सभी प्रकार की बाधाओं, रोगों, और कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत संतान प्राप्ति, शत्रु बाधा निवारण, और मानसिक शांति के लिए अत्यधिक फलदायी माना गया है। भगवान कार्तिकेय की कृपा से व्यक्ति साहस, शक्ति, और आत्मविश्वास प्राप्त करता है।
स्कंद षष्ठी का संदेश
यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि साहस और दृढ़ संकल्प के साथ जीवन की हर कठिनाई का सामना किया जा सकता है। भगवान स्कंद की पूजा द्वारा हम अपने भीतर की शक्ति को जागृत कर सकते हैं और बुराई पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
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