मेष संक्रांति वह पावन अवसर है जब सूर्य देव मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करते हैं। यह दिन हिंदू नववर्ष (वैशाख मास) का प्रारंभिक पर्व भी माना जाता है और भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। विशेष रूप से उत्तर भारत में इसे बैसाखी के रूप में भी मनाया जाता है।
मेष संक्रांति का महत्व
- इस दिन सूर्य देव की आराधना करने से जीवन में उन्नति, धन और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
- यह कृषि प्रधान समाज के लिए नई फसल और समृद्धि का पर्व है।
- मेष संक्रांति पर गंगा स्नान, दान-पुण्य और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है।
- यह पितृ ऋण से मुक्ति और आत्मिक शांति के लिए शुभ समय माना जाता है।
मेष संक्रांति पूजा विधि
- प्रातःकाल गंगा या पवित्र नदी में स्नान करें।
- सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें और गायत्री मंत्र का जप करें।
- लाल वस्त्र पहनकर भगवान सूर्य की पूजा करें।
- गेहूं, गुड़, तिल और अन्न का दान करें।
- जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
मेष संक्रांति के शुभ फल
- सूर्य पूजा से आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होती है।
- कारोबार और नौकरी में सफलता मिलती है।
- घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- मानसिक तनाव और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।
आगामी संक्रांति की तिथियाँ
- 16 नवंबर 2025, रविवर वृश्चिक संक्रांति
- 16 दिसंबर 2025, मंगलावर धनु संक्रांति
- 14 जनवरी 2026, बुधवार मकर संक्रांति