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मीना संक्रांति : महत्व, पूजा विधि, दान और ज्योतिषीय प्रभाव

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जब सूर्य देव कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में प्रवेश करते हैं, तब उस दिन को मीना संक्रांति कहा जाता है। यह हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र दिन माना जाता है। मीना संक्रांति के साथ सूर्य का उत्तरायण काल अपने अंतिम चरण में पहुँचता है और इसके बाद वसंत ऋतु का शुभारंभ होता है। इस दिन स्नान, दान और सूर्य उपासना का विशेष महत्व है। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि मीना संक्रांति पर किया गया दान और पुण्य अक्षय फल प्रदान करता है और व्यक्ति के पापों का नाश करता है।

धार्मिक परंपराएँ

  • पवित्र नदियों में स्नान और भगवान सूर्य को अर्घ्य देना।
  • तिल, गुड़, अन्न और वस्त्र का दान करना।
  • सूर्य मंत्रों का जाप और सूर्योपासना करना।
  • गरीब और जरूरतमंदों को भोजन कराना।

ज्योतिषीय महत्व

सूर्य के मीन राशि में प्रवेश करने से जातकों के जीवन में बदलाव आता है। यह राशि बृहस्पति ग्रह की है, इसलिए इस समय किया गया दान और पूजा विशेष रूप से गुरु ग्रह को मजबूत करता है। यह काल आध्यात्मिक साधना, ध्यान और भक्ति के लिए अत्यंत शुभ होता है। मीना संक्रांति का दिन धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद खास है। इस दिन स्नान, दान और सूर्य उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि, पापों से मुक्ति और शुभ फल प्राप्त होता है।
आगामी संक्रांति की तिथियाँ
  • 16 नवंबर 2025, रविवर वृश्चिक संक्रांति
  • 16 दिसंबर 2025, मंगलावर धनु संक्रांति
  • 14 जनवरी 2026, बुधवार मकर संक्रांति
डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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