जब सूर्य देव मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, तब उस दिन को कुंभ संक्रांति कहा जाता है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार अत्यंत शुभ माना जाता है। कुंभ संक्रांति के साथ ही सूर्य देव का कुंभ राशि में आगमन होता है, जिसे धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से विशेष महत्व दिया जाता है।
इस दिन विशेषकर गंगा, यमुना और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व होता है। माना जाता है कि कुंभ संक्रांति के दिन किया गया दान और पुण्य अक्षय फल प्रदान करता है।
धार्मिक परंपराएँ
- सूर्योदय से पहले स्नान और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करना।
- तिल, गुड़, अनाज और वस्त्र का दान।
- व्रत और पूजा-पाठ कर ग्रहदोषों से मुक्ति की कामना।
- कई स्थानों पर यह पर्व कुंभ मेले की शुरुआत से भी जुड़ा होता है।
ज्योतिषीय महत्व
सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश करने से जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। माना जाता है कि यह काल ध्यान, साधना और दान-पुण्य के लिए उत्तम होता है। कुंभ राशि शनि ग्रह की राशि है, इसलिए इस समय किए गए पुण्य कार्य और पूजा से शनि दोष में भी कमी आती है। कुंभ संक्रांति धार्मिक आस्था, सामाजिक एकता और ज्योतिषीय दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन स्नान, दान और सूर्य उपासना करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।आगामी संक्रांति की तिथियाँ
- 16 नवंबर 2025, रविवर वृश्चिक संक्रांति
- 16 दिसंबर 2025, मंगलावर धनु संक्रांति
- 14 जनवरी 2026, बुधवार मकर संक्रांति