कन्या संक्रांति : महत्व, पूजा विधि और ज्योतिषीय प्रभाव
हिंदू पंचांग के अनुसार, जब सूर्य सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करते हैं तो उस दिन को कन्या संक्रांति कहा जाता है। यह संक्रांति सामान्यतः भाद्रपद और आश्विन माह के संधिकाल में आती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन दान, स्नान और सूर्योपासना से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
कन्या संक्रांति का संबंध पितृपक्ष से भी माना जाता है, इसलिए इस समय पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और दान का महत्व और भी बढ़ जाता है।
कन्या संक्रांति के धार्मिक कार्य
- प्रातःकाल पवित्र नदी में स्नान कर सूर्य देव को जल अर्पित करें।
- गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और अनाज दान करें।
- पितरों की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करें।
- सूर्य मंत्रों का जाप करें और घर में दीप जलाएँ।
ज्योतिषीय महत्व
कन्या राशि में सूर्य का प्रवेश बुद्धि, ज्ञान और विश्लेषण क्षमता को मजबूत करता है। यह समय शिक्षा, नौकरी और स्वास्थ्य सुधार के लिए शुभ माना जाता है। कन्या राशि पृथ्वी तत्व की राशि है, अतः इस अवधि में स्थिरता और कर्मप्रधानता बढ़ती है।
कन्या संक्रांति न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और पितृ कृपा प्राप्त होती है।
आगामी संक्रांति की तिथियाँ
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17 सितंबर 2025, बुधवार कन्या संक्रांति
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17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार तुला संक्रांति
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16 नवंबर 2025, रविवर वृश्चिक संक्रांति
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16 दिसंबर 2025, मंगलावर धनु संक्रांति
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