आदि अनादि अनंत अखंङ, अभेद अखेद सुबेद बतावैं ।
अलख अगोचर रुप महेस कौ, जोगि जती मुनि ध्यान न पावैं ॥
आगम निगम पुरान सबै, इतिहास सदा जिनके गुन गावैं ।
बङभागी नर नारि सोई, जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥1॥
सृजन सुपालन लय लीला हित,जो विधि हरि हर रुप बनावैं ।
एकहि आप विचित्र अनेक, सुबेष बनाइ कैं लीला रचावैं ॥
सुंदर सृष्टि सुपालन करि, जग पुनि बन काल जु खाय पचावैं ।
बङभागी नर नारि सोई, जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥2॥
अगुन अनीह अनामय अज,अविकार सहज निज रुप धरावैं ।
परम सुरम्य बसन आभूषण, सजि मुनि मोहन रुप करावैं ॥
ललित ललाट बाल बिधु विलसै, रतन हार उर पै लहरावैं ।
बङभागी नर-नारि सोई, जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥3॥
अंग विभूति रमाय मसान की, विषमय भुजगनि कौं लपटावैं ।
नर कपाल कर मुंङमाल गल, भालु चरम सब अंग उढावैं ॥
घोर दिगंबर लोचन तीन, भयानक देखि कैं सब थर्रावैं ।
बङभागी नर नारि सोई, जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥4॥
सुनतहि दीन की दीन पुकार, दयानिधि आप उबारन धावैं ।
पहुँच तहाँ अबिलंब सुदारुन, मृत्यु को मर्म विदारि भगावैं ॥
मुनि मृकंङु सुत की गाथा,सुचि अजहुँ बिग्यजन गाइ सुनावैं ।
बङभागी नर नारि सोई, जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥5॥
चाउर चारि जो फूल धतूर के,बेल के पात औ पानि चढावैं ।
गाल बजाय कै बोल जो, ‘हर हर महादेव’ धुनि जोर लगावैं ॥
तिनहिं महाफल देय सदासिव, सहजहि भुक्ति मुक्ति सो पावैं ।
बङभागी नर नारि सोई, जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥6॥
बिनसि दोष दुख दुरित दैन्य, दारिद्रय नित्य सुख सांति मिलावैं ।
आसुतोष हर पाप ताप सब, निरमल बुध्दि चित्त बकसावैं ॥
असरन सरन काटि भव बंधन, भव निज भवन भव्य बुलवावैं ।
बङभागी नर नारि सोई, जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥7॥
औढरदानि उदार अपार जु,नैकु सी सेवा तें ढुरि जावैं ।
दमन असांति समन सब संकट, विरद बिचार जनहि अपनावैं ॥
ऐसे कृपालु कृपामय देब के, क्यों न सरन अबहीं चलि जावैं ।
बङभागी नर नारि सोई, जो सांब सदासिव कौं नित ध्यावैं ॥8॥