जय जय भैरवी असुर भयावनी

ambe-gauri-maiya
Jai Jai Bhairavi Asur Bhayawani मैथिली गीत/भजन है , इस गीत के रचयिता श्री विद्यापति जी है , जिनका जन्म १३५२ में हुआ था। यह प्रसिद्ध गीत माता दुर्गा को समर्पित

जय जय भैरवि असुर भयाउनि,
जय जय भैरवि असुर भयाउनि,
पशुपति भामिनी माया,
सहज सुमति वर दियउ गोसाउनि,
सहज सुमति वर दियउ गोसाउनि,
अनुगति गति तुअ पाया । जय जय भैरवि असुर भयाउनिवासर रैन सबासन शोभित,
वासर रैन सबासन शोभित,
चरण चन्‍द्रमणि चूड़ा,
कतओक दैत्‍य मारि मुख मेलल,
कतओक दैत्‍य मारि मुख मेलल,
कतओ उगिलि कएल कूड़ा । जय जय भैरवि असुर भयाउनिसामर बरन नयन अनुरंजित,
सामर बरन नयन अनुरंजित,
जलद जोग फुलकोका,
कट कट विकट ओठ पुट पांडरि,
कट कट विकट ओठ पुट पांडरि,
लिधुर फेन उठ फोंका । जय जय भैरवि असुर भयाउनिघन घन घनय घुंघरू कत बाजय,
घन घन घनय घुंघरू कत बाजय,
हन हन कर तुअ काता,
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक,
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक,
पुत्र बिसरू जनि माता । जय जय भैरवी असुर भयावनी
जय जय भैरवी असुर भयावनी जय जय भैरवि असुर भयाउनि

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