श्री कृष्ण

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श्री कृष्ण हिंदू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं, जिन्हें भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। वे महाभारत के महानायक और भगवद्गीता के उपदेशक हैं। उनके जीवन की कथाएँ कई ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित हैं, जिनमें से प्रमुख हैं महाभारत, भागवत पुराण, और हरिवंश पुराण।

श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था, जहाँ उनके मामा कंस ने उनके माता-पिता, देवकी और वसुदेव को बंदी बनाकर रखा था। कृष्ण को कंस के अत्याचारों से बचाने के लिए वसुदेव उन्हें रात में ही गोकुल में नंद बाबा और यशोदा माता के पास ले गए। वहाँ वे एक साधारण ग्वाले के रूप में पले-बढ़े और अपने बाल्यकाल में अनेक लीलाएँ कीं, जिनमें गोवर्धन पर्वत उठाना, कंस का वध, और राधा के साथ उनकी रासलीला प्रमुख हैं।

महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन के सारथी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। युद्ध से पहले अर्जुन को मोह से मुक्त करने के लिए उन्होंने उसे भगवद्गीता का उपदेश दिया, जिसमें कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग के सिद्धांत बताए गए हैं। गीता के ये उपदेश आज भी जीवन के विभिन्न पहलुओं में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

श्री कृष्ण का व्यक्तित्व विविधतापूर्ण है—वे एक ईश्वर, एक प्रेमी, एक मित्र, एक राजनयिक, और एक आदर्श योगी के रूप में पूजनीय हैं। उनका जीवन और उनके उपदेश आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

श्री कृष्ण ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई:

बाल्यकाल की लीलाएं: बचपन में, उन्होंने कई राक्षसों का वध किया और गोपियों के साथ रासलीला रचाई।

कंस वध: उन्होंने अपने मामा कंस का वध करके मथुरा को अत्याचार से मुक्त किया।

कुरुक्षेत्र युद्ध: महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी के रूप में उन्होंने भगवद गीता का उपदेश दिया, जो धर्म, कर्म, और मोक्ष के बारे में अद्वितीय ग्रंथ है।

भगवद गीता में श्री कृष्ण ने कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग के माध्यम से जीवन के सिद्धांतों को समझाया। उनका जीवन हमें प्रेम, धैर्य, और धर्म का पालन करने की शिक्षा देता है।

श्री कृष्ण से जुड़े कई प्रमुख त्योहार हिंदू धर्म में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं। ये त्योहार उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और लीलाओं का स्मरण कराते हैं। यहाँ कुछ मुख्य श्री कृष्ण से संबंधित त्योहारों का विवरण दिया गया है:

जन्माष्टमी (कृष्ण जन्माष्टमी)

महत्व: यह श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव है। इसे भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण के जन्म के रूप में मनाया जाता है।

तिथि: यह श्रावण (अगस्त-सितंबर) महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।

उत्सव: इस दिन भक्त व्रत रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजा और भजन होते हैं। आधी रात में भगवान कृष्ण का जन्म समारोह मनाया जाता है, क्योंकि यही उनका जन्म समय माना जाता है।

गोवर्धन पूजा

महत्व: यह त्योहार गोवर्धन पर्वत को भगवान कृष्ण द्वारा उठाए जाने की घटना का स्मरण करता है, जब उन्होंने इंद्र देव के प्रकोप से गोकुलवासियों की रक्षा की थी।

तिथि: दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है।

उत्सव: इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है, और घरों में अन्नकूट (खाने का पर्व) मनाया जाता है जिसमें विभिन्न प्रकार के भोजन भगवान को अर्पित किए जाते हैं।

गोपाष्टमी

महत्व: इस दिन श्री कृष्ण ने पहली बार गायों को चराने का कार्य संभाला था, इसलिए इसे ग्वालों और गायों का पर्व माना जाता है।

तिथि: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।

उत्सव: इस दिन ग्वाल-बाल, गायों की पूजा की जाती है। विशेषकर मथुरा और वृंदावन में इसे धूमधाम से मनाया जाता है।

रास पूर्णिमा

महत्व: यह त्योहार रासलीला का उत्सव है, जो भगवान कृष्ण और गोपियों के दिव्य नृत्य को समर्पित है।

तिथि: शरद पूर्णिमा को मनाया जाता है।

उत्सव: वृंदावन, मथुरा और उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों में रासलीला नृत्य और भजनों का आयोजन किया जाता है।

होली

महत्व: होली श्री कृष्ण के मथुरा और वृंदावन के दिनों की याद दिलाती है, जहाँ वे गोपियों और ग्वालों के साथ रंग खेलते थे।

तिथि: फाल्गुन (फरवरी-मार्च) महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।

उत्सव: रंगों और प्रेम का त्योहार, इस दिन लोग एक-दूसरे पर रंग डालते हैं और भजन गाते हैं।

अक्षय तृतीया

महत्व: भगवान कृष्ण से जुड़ा यह त्योहार उनकी दिव्य लीलाओं और दान धर्म के महत्व को रेखांकित करता है।

तिथि: वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है।

उत्सव: इस दिन लोग दान-पुण्य करते हैं और कृष्ण की पूजा करते हैं।

इन त्योहारों के माध्यम से श्री कृष्ण की लीलाओं और उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं का स्मरण किया जाता है। प्रत्येक त्योहार हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेने और धर्म, प्रेम, और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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